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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

‘खुद से प्यार मत करें’

‘वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करो’ आन्दोलन में सोलवेनिया के दार्शनिक सालवेज जिजेक का भाषण

वे कह रहे हैं कि हम सब हारे हुए लोग हैं, परन्तु वास्तविक हारने वाले तो वाल स्ट्रीट में बैठें हैं। उनको हमारे पैसे में से करोड़ों देकर कर बचाया गया है। हमें समाजवादी कहा जाता है, परन्तु उनके यहां अमीरों के लिए समाजवाद हमेशा से है। वे कहते हैं कि हम निजी सम्पत्ति का आदर नहीं करते, परन्तु 2008 के वित्तिय संकट में बहुत मेहनत से कमाई हुई निजी सम्पत्ति को नष्ट किया गया और तब भी यहां आए हम सभी लोगों को हफ्तों तक रात दिन तबाह होते रहे। वे कहते हैं कि हम हवाईमहल बनाते हैं। वास्तव में हवाई किले बनाने वाले तो वो हैं जो सोचते हैं कि चीजे हमेशा उसी तरह चलती रहेंगी, जिस तरह वे चलती आ रही हैं। हम हवाई किले बनाने वाले नहीं हैं। हम उस सपने के बारे में जागरूक कर रहे हैं जो अब एक दुःस्वपन में बदल रहा है।
हम किसी को भी नष्ट नहीं कर रहे हैं। हम तो केवल इस बात के गवाह है कि व्यवस्था खुद को नष्ट कर रही है। हमनें कार्टूनों में एक क्लासिक दृश्य देखा है। एक बिल्ली चोटी पर पहुंच चुकी है, परन्तु इस बात को नजरअंदाज करती है कि उसके नीचे कुछ भी नहीं है और चलती रहती है। परन्तु वह जैसे ही नीचे देखती है और उसे इस बात का अहसास होता है तो वह धड़ाम से गिरती है। हम भी यहां बैठकर वाल स्ट्रीट में बैठे उन लोगों को बता रहे हैं- ‘‘ओ, नीचे देखो!’’
अप्रैल, 2011 के मध्य में, चीन की सरकार ने वैक्लपिक वास्तविकता या समय चक्र वाली सभी कहानियों, टीवी, फिल्मों और उपन्यासों पर रोक लगा दी। चीन के लिए एक अच्छा सूचक है। वे लोग अभी भी विकल्प का सपना देख रहे हैं, इसलिए उन्हें इन सपनों पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। हमे तो अपने पर प्रतिबंध लगाने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि शासक व्यवस्था ने हमारे सपने देखने की क्षमता को ही दबा दिया है। उन फिल्मों पर गौर करो, जिन्हें हम हमेशा देखते हैं। संसार के खात्में की कल्पना बहुत आसान है। एक उल्कापिंड सारी जिंदगी को खत्म कर रहे हैं। परन्तु तुम पूंजीवाद के खात्मे की कल्पना नहीं कर सकते।
हम यहां क्या कर रहे हैं? इस बारे में मैं कम्युनिस्ट दिनों का एक पुराना खूबसूरत चुटकला सुनाता हूं। एक आदमी को पूर्वी जर्मनी से साइबेरिया काम करने के लिए भेजा दिया गया। उसे पता था कि उसके पत्रा सैंसर होकर जाएंगें। इसलिए उसने अपने मित्रा को कहा,‘‘हम एक कोड रख लेते हैं। यदि मेरा पत्रा नीली स्याही में लिखा हो तो समझना कि मैं सच बोल रहा हूं। यदि पत्रा लाल स्याही में लिखा हो तो समझना कि इसमें झूठ लिखा है।’’ एक महीने बाद उसके दोस्त को पहला पत्रा मिला। यह पूरा नीले में लिखा गया था। इस पत्रा में लिखा था- ‘‘यहां हर चीज खूबसूरत है। गोदाम अनाज से भरे पड़े हैं। सिनेमाघरों में पश्चिम की अच्छी फिल्में दिखाई जाती है। घर बहुत बड़े और सुविधाजनक हैं। यहां केवल लाल स्याही खरीदना मना है।’’ हम भी इस तरह की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। हमें इच्छा मुताबिक जीने की आजादी तो है परन्तु हमें लाल स्याही नहीं मिल रही है। यह भाषा हमारी गुलामी को एकदम जाहिर कर देती है। हमें जिस तरह से आजादी के बारे में बोलना सिखाया जा रहा है -यानि आतंक के विरूद्ध युद्ध और ऐसे ही अन्य बातें- ऐसी बातें आजादी को झुठलाना है। और यहां आप हम सब को लाल स्याही दे रहे हैं।
इसमें एक खतरा है। कभी भी खुद से प्यार मत करो। हम यहां अच्छा समय गुजार रहे हैं। परन्तु याद रखो कि मेला खत्म हो जाता है। जब हम कुछ दिनों बाद अपनी सामान्य जिन्दगियों में लौट जाएंगें तो हमारे लिए क्या चीज महत्वपूर्ण होगी? क्या उस समय कोई बदलाव हो जाएगा। मैं नहीं चाहता कि आप इन दिनों को इस तरह याद करें- ‘हाय! हम नौजवान थे और सबकुछ बहुत सुन्दर था।’ याद रखों कि हमारा मूल संदेश है- ‘‘हमें विकल्प के बारे में सोचने दो।’’ यदि यह नियम टुटता है तो हम भविष्य में बनने वाले सबसे अच्छे संसार में नहीं रह पाएंगें। परन्तु अभी रास्ता बहुत लम्बा है। वास्तव में हम बहुत मुश्किल सवालों का सामना कर रहे हैं। हम नहीं जानते कि हम क्या चाहते हैं? क्या सामाजिक संगठन पूंजीवाद की जगह ले सकता है? हम किस तरह के नए नेता चाहते हैं?
याद रखो भ्रष्टाचार और लालच समस्या नहीं है। समस्या व्यवस्था है। यह आपको भ्रष्ट बनने पर मजबूर करती है। अपने दुश्मनों से ही सावधान नहीं रहना, बल्कि झूठे दोस्तों से भी सावधान रहो जो इस प्रक्रिया को पिघलाने के कार्य में अभी भी लगे हुए हैं। इससे तुम्हे कॉफी बगैर कैफीन मिलेगी, बियर बगैर एल्कोहल ही मिलेगी और आईसक्रीम बगैर वसा के मिलेगी। वे इस विरोध को अहानिकारक बनाने की कोशिश कर रहे हैं, एक नैतिक विरोध में तब्दील करने में लगे हैं। एक कैफीनरहित प्रक्रिया बनाने में लगे हैं। परन्तु हम जिस कारण से यहां हैं, वो है कि हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां कोक की कैन को रिसाईकिल करना, दान में कुछ डालर देना,या एक स्टारबक कैपूचिनों खरीदना, तीसरी दूनिया के भूख से तड़पते बच्चों के लिए एक फीसदी भेजना ही हमें अच्छा महसूस करवाने के लिए काफी है। काम और यातनाएं आउ$टसोर्स करने के बाद, हमारी प्रेम को शादी की एजेंसियों द्वारा आउ$टसोर्स करने के बाद हम देख सकते हैं कि लम्बे समय से हमें हमारी राजनैतिक दोस्ती भी आउ$टसोर्स करने की इजाजत है। हम इसे वापिस चाहते हैं।
हम कम्युनिस्ट नहीं हैं यदि कम्युनिज्म का मतलब एक ऐसी व्यवस्था से है जो 1990 में डह गई। याद करों कि आज सबसे सक्षम कम्युनिस्ट सबसे निर्मम पूंजीपति हैं। आज चीन में हमारे पास ऐसा पूंजीवाद है जो अमेरिकी पूंजीवाद से भी ज्यादा गतिमान है, परन्तु वहां जनवाद (डेमाक्रेसी) की जरूरत नहीं है। जिसका मतलब है कि जब भी तुम पूंजीवाद की आलोचना करों तो खुद को इस बात के लिए ब्लैकमेल मत होने दो कि तुम जनवाद (डेमाक्रेसी) के खिलाफ हो। जनवाद (डेमाक्रेसी) और पूंजीवाद की शादी का अन्त हो गया है। अब तब्दिली सम्भव है।
आज हम किस चीज को सम्भव समझते हैं। मीडिया को देखो। एक तरफ तकनीक और यौनिकता में हर चीज सम्भव लगती है। आप चांद पर जा सकते हैं, बायोजिनेटिक से अमर हो सकते हैं, पशुओं के साथ संभोग कर सकते हैं, परन्तु समाज और अर्थव्यवस्था के क्षेत्रा में देखों। वहां लगभग हर चीज असम्भव मानी जाती है। आप अमीरों के लिए थोड़ा सा टैक्स बढ़ाना चाहते हो। वे आपको कहते हैं यह असम्भव है। हम प्रतियोगिता में हार जाएंगें। आप स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ज्यादा रकम चाहते हैं तो वे आपको कहते हैं-‘‘असम्भव, इसका मतलब सर्वसत्तावाद होगा।’’ दुनिया में कुछ न कुछ गलत है जहां आपको अमर बनाने का वायदा किया जाता है परन्तु स्वास्थ्य सेवाओं पर थोड़ा भी खर्च नहीं किया जा सकता। हमें अपनी प्राथमिकताओं को सीधे सीधे तय करने की जरूरत है। हम जीवन के लिए उच्च स्तर नहीं चाहते। हम एक अच्छा जीवन स्तर चाहते हैं। हम केवल इसी मायने में कम्युनिस्ट हैं कि हम जनसाधारण के भले की सोचते हैं, स्वाभाविक जनसाधारण जो बौद्धिक सम्पत्ति द्वारा निजी बना लिए गए हैं। बायोजिनेटिक के जनसाधारण। इसी के लिए हम लड़ेंगें।
कम्युनिज्म पूरी तरह विफल हो गया, परन्तु जनसाधारण की समस्याएं हैं। वे आपको कह रहे हैं कि आप अमेरिकी नहीं हो। परन्तु खुद के अमेंरिकी होने का दावा करने वाले कंजरवेटिव कट्टरों को कुछ याद कराना होगा: इसाईयत क्या है? यह एक पवित्रा भावना है। पवित्रा आत्मा क्या होती है? यह ऐसे आस्तिकों की समतामूलक समुदाय है जो एक दूसरे से प्यार से जुड़े होते हैं और इसका पालन करना उनकी अपनी आजादी और जिम्मेवारी है। इस मायने में, आज यहां पवित्रा भावना है। और वॉल स्ट्रीट में नास्तिक बैठे हैं जो तिरस्कार योग्य बुतों की पूजा कर रहे हैं। इसलिए हमें धैर्य रखना चाहिए। मुझे केवल एक चीज से ड़र लगता है कि हम कुछ दिनों बाद घर जाएंगें और उसके बाद साल में एक बार मिलेंगें, बीयर पीएंगें, और अतीत को याद करते हुए कहेंगें-‘‘ हमने यहां कितना अच्छा समय गुजारा था।’’ खुद से वायदा करों कि इस तरह का नहीं होगा। हम जानते हैं कि लोग प्रायः कुछ कामना रखते हैं परन्तु इसे वास्तव में चाहते नहीं हैं। जिसकी तुम कामना रखते हो उसे वास्तविकता में चाहने से मत डरो। सबको धन्यवाद।
(9 अक्तुबर को जुकोटी पार्क में वॉल स्ट्रीट घेरों प्रदर्शन में दिया गया भाषण)

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