विषय वस्तु

बुधवार, 30 मई 2012


उठो! प्रतिरोध करो! मुक्त हों!

क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा (आरडीएफ) 

सम्पर्क: revolutionarydemocracy@gmail.com
क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा प्रस्तावित राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी सैंटर (एनसीटीसी) बनाने की कड़े शब्दों में निंदा करता है। भारतीय राज्य एनसीटीसी का निर्माण करने की योजना बना रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवाद के दिशा-निर्देश के अनुसार बनने वाली यह फासीवादी संस्था आतंकवाद से लड़ने के नाम पर असहमति की सभी आवाजों को कठोरता से दबाएगी और विरोध की हर आवाज को अपराधी घोषित कर देगी। एनसीटीसी केन्द्र की संस्था होगी और इसके आफिसरों को दमनकारी यूएपीए के तहत गिरफ्तार करने, तलाशी लेने और जब्ती करने की शक्तियों से लैस किया जाएगा। साम्राज्यवादी ताकतों के समक्ष पूर्णतया नतमस्तक भारतीय राज्य को ऐसे दमनकारी दंड सहिंता की जरूरत है, ताकि प्राकृतिक सम्पदा की लूट, और ‘विकास’ के नाम पर जिन्दगी और आजीविका के विनाश के खिलाफ तीव्र होते जनप्रतिरोध को वह दबा सके।
अमेरिका कुछ समय से भारत की ‘आंतरिक सुरक्षा’ तय करने में केन्द्रीय भूमिका निभा रहा है। सन् 2000 में एनडीए सरकार ने ‘अमेरिकी हितों’ की निगरानी करने के लिए नई दिल्ली में एफबीआई की पहली चौकी बनाने की अनुमति दी थी। 2005 में अमेरिका-भारत रक्षा सम्बंधों बारे नए चौखटा समझौते तथा 124 न्यूकलियर समझौते पर हस्ताक्षर करके इसे ओर बढ़ावा दिया गया। यह एनसीटीसी भी भारत की सरजमीं पर अमेरिकी आतंकवाद को संस्थागत करने के लिए सीधे अमेरिकी मार्गदर्शन और निर्देश के तहत बनाया जा रहा है। अमेरिका की ‘आतंकवाद विरोधी नीति’ सूचना एकत्रीकरण के ऐसे तरीके अपनाने, कवर्ट आपरेशन चलाने, गैर-राजकीय बलों के प्रयोग करने, ड्रोन से हमला करने की खुले आम घोषणा करती है और अमेरिका की सेना और खुफिया विभाग इन सारी कार्रवाईयों को पूर्ण समर्थन दे रहा है। एनसीटीसी भारतीय राज्य के अमेरिका के साथ गठजोड़ का ही उत्पाद है।
यह संस्था ‘आंतरिक सुरक्षा’ सम्बंधी मामलों की सारी शक्तियों को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के हाथों में केन्द्रीत कर देगा और संघीय प्रणाली के दिखावे मात्र का भी खात्मा कर देगा। कानून और व्यवस्था, जोकि राज्य सरकार का मामला है, पूर्णतया केन्द्र के हाथ में चला जाएगा। इसका परिणाम शक्ति के खतरनाक केन्द्रीकरण में होगा। पुलिस महकमें सहित राज्य सरकार की सारी आर्थिटी और अधिकारी एनसीटीसी को सूचना, दस्तावेज और रिपोर्ट देने के लिए बाध्य होंगें। इससे एनसीटीसी और आईबी सर्वोच्च और अनियंत्रित शक्ति से लैस हो जाएंगें और यह दक्षिणी एशिया में सुरक्षा राज्य निर्माण के इतिहास में खतरनाक होगा। वैसे ही भारत में राज्य सरकारों को बेहद सीमित शक्तियों मिली हैं, जिसकी स्थिति किसी नगरपालिका से ज्यादा बेहतर नहीं हैं, क्योंकि प्रशासनिक और वित्तिय नियंत्रण हमेशा से ही एकदम केन्द्रीकृत केन्द्रीय सरकार के हाथों में निहित है। अब एनसीटीसी बनने से इन सीमित शक्तियों पर एक ओर हमला किया जाएगा और राज्य सरकारों की सीमित शक्तियों पर भी रोकथाम लगा दी जाएगी।
राज्य द्वारा असहमति की आवाजों और उत्पीड़ित जनता से दुर्व्यवहार करने और उनका अपराधीकरण कई बार किया गया है। यूएपीए, मैकोका, गुजकोका, पीएसए जैसे दमनकारी कानूनों के जरिए भारतीय राज्य मूलभूत अधिकारों, जमीन, आजीविका, आत्मसम्मान और राष्ट्रीयता के लिए लड़ाई कर रही जनता पर फासीवादी दमन ढहा रहा है। साथ ही दलित, आदिवासी जैसी उत्पीड़ित जनता, मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को इन दमनकारी कानूनों का प्रयोग कर व्यापक पैमानें पर केसों में फंसाया जा रहा है।  
कई राजनैतिक संगठनों, सांस्कृतिक समूहों और जनसंगठनों पर फासीवादी राज्य ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। उनके कार्यकर्ताओं को निरंतर गिरफ्तार किया जा रहा है, उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं, झूठे केसों में फंसाया जा रहा है, यहां तक कि झूठी मुठभेड़ों में हत्या कर दी जाती है। मुस्लमानों को तंग करने के लिए राज्य भारतीय मुजाहिदिन जैसे बोगस संगठन भी बना रहा है तथा हजारों मुस्लमानों पर ‘आतंकवादी’ बताकर झूठे केस दर्ज कर दिए हैं। केन्द्रीय और पूर्वी भारत में राज्य ने आपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर जनता पर खुनी जंग छेड़ रखी है। अर्धसैन्य बलों, इलिट बलों, विजिलैंट गिरोह सहित सेना और वायू सेना को हजारों की संख्या में तैनात किया गया है ताकि वहां बसने वाले आदिवासियों को उनकी जमीन और जंगलों से उजाड़ा जा सके और इस खनिज सम्पंन क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की शिकारगाह बनाया जा सके। कश्मीर और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में भी भारतीय राज्य ने राष्ट्र और आत्मनिर्णय की लड़ाई लड़ रहे लोगों पर फासीवादी युद्ध छेड़ा हुआ है। हाल ही में झारखंड सीआरपीएफ ने मांग की है कि उन्हें आफ्सा की ‘ढ़ाल’ दी जाए ताकि उन्हें मनमर्जी से हत्या करने, यातना देने, नागरिकों को लूटने की खुला लाईसैंस मिल जाए। एनसीटीसी भारतीय राज्य के हाथ में दमन का एक ओर खतरनाक हथियार होगा जिसके जरिए वह जनता को ‘आतंकी’, ‘अतिवादी’ ठहराकर उनका दमन करेगा।
पश्चिम बंगा की ममता बनर्जी और ओडिशा के नवीन पटनायक के नेतृत्व में कई गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री एनसीटीसी को राज्य के संघीय ढ़ांचे के खिलाफ बताकर केन्द्र सरकार से नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं। यह एक भद्दा मजाक है क्योंकि ये सभी मुख्यमंत्री विषेशतः ये दोनों केन्द्रीय गृहमंत्रालय के साथ मिलकर फासीवादी राजकीय दमन अभियान चला रहे हैं। चिदम्बरम ने ‘नक्सलवाद से प्रभावी तरीके से निपटने’ के लिए ममता बनर्जी की खुलेआम प्रशंसा की है। उसने कोलकाता के नजदीक ‘राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड़’ (एनएसजी) हब की आधारशिला रखी है और चुनाव पूर्व वायदों के विपरित उसने जंगलमहल से अर्धसैन्य बलों को वापिस नहीं बुलाया और न ही दमनकारी यूएपीए कानून के तहत दर्ज केसों को निरस्त किया। सत्ता में आने के बाद उसने राजनैतिक बंदियों को रिहा करने के अपने वायदे को पूरा करने की बजाए जगंलमहल के सैंकड़ों ग्रामीणों को जेल में बंद कर दिया तथा सलवा जुडूम की तर्ज पर राज्य समर्थित विजिलैंट गिरोह बनाना शुरू कर दिया। उसकी पार्टी के गुंडें अनाधिकारिक तौर पर भैरव वाहिनी बनाकर जंगलमहल के लोगों पर हमला कर रहे हें। सीपीआई (माओवादी) के नेता और पोलित ब्यूरों सदस्य किशनजी की झूठी मुठभेड़ में हत्या उसके फासीवादी शासन का नृशंस नमूना है। इसी तरह, नवीन पटनायक ओडिशा में पोस्को, वेदांता और अन्य विशालकाय कारपोरेट के खिलाफ लड़ रही जनता का दमन करने के लिए जिम्मेवार है। कलिंगनगर में विरोध प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों की हत्या, नारायणपट्टना में लड़ाकू जनता पर नृशंस हमला और चासी मूलिया आदिवासी संघ (सीएमएएस) के अध्यक्ष विडेका सिंघन्ना की हत्या उसी के खाते में दर्ज है। कई सीएमएएस कार्यकर्ताओं पर उसने यूएपीए के तहत केस दर्ज करवाएं हैं। इसी तरह नरेन्द्र मोदी, जयललिता, प्रकाश सिंह बादल जैसे बेजेपी और गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी राज्य सरकारों की शक्तियों पर रोकथाम लगाने के नाम पर केन्द्र सरकार से नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के फासीवादी बेजेपी मुख्यमंत्री रमण सिंह ने एनसीटीसी को कुछ संशोधनों सहित स्वीकार कर लिया है। बेजेपी के अन्य मुख्यमंत्रियों भी जनता पर दमन करने, विरोध प्रदर्शन करने वाली जनता पर गोली चलाने का आदेश देने के कारण फासीवादी शासन के लिए कुख्यात हैं। शासक वर्ग के कई एजेंट एनसीटीसी के खिलाफ इसलिए आवाज नहीं उठा रहे कि उन्हें जनता के कल्याण की कोई चिंता हो या वे ‘संघीय ढ़ांचे को बचाना’ चाहते हैं, बल्कि वे असहमति की आवाजों का दमन करने के लिए ज्यादा अथार्टी चाहते हैं और ‘आंतरिक सुरक्षा’ के नाम पर आने वाली अथाह धनराशि में बड़ा हिस्सा चाहते हैं। 2008 में जब यूएपीए में खतरनाक संशोधन किए जा रहे थे तो छद्म-वाम सहित किसी भी सांसद ने संसद में इस पर आपत्ति नहीं की। भारत के सभी संसदीय दलों का कारपोरेट लूट में हिस्सा है और इसलिए वे जनता पर युद्ध को तीव्र करने और सभी तरह की असहमतियों को गैरकानूनी और अपराधिक ठहराने के केन्द्र सरकार के हर प्रयास का समर्थन करते हैं और उन्हें लागू करते हैं। संसाधनों की कारपोरेट लूट को बढ़ावा देने के लिए जनता पर छेड़ी गई खुनी और नृशंस जंग का और असहमति की सभी आवाजों को दबाने के राज्य प्रयासों का प्रतिरोध करने के लिए देश की सभी प्रगतिशील और जनवादी ताकतों को एकजुट होना चाहिए।
-एनसीटीसी वापिस लो और दमनकारी यूएपीए को निरस्त करो।
-आपरेशन ग्रीन हंट बंद करो।
-फर्जी केसों में जनता को गिरफ्तार करना बंद करो।

अध्यक्ष महासचिव
वरवरा राव 09676541715 राजकिशोर 09717583539

मंगलवार, 29 मई 2012

नोनाडांगा के लोगों की एकजुटता और देबलीना और अभिजन की बेशर्त रिहाई का आह्वान


जन कार्यकर्ता देबलिना चक्रवर्ती और अभिजन सरकार की गिरफ्तारी और जेल में भेजना हम सब के लिए चिंता का विषय है। क्यों ममता बनर्जी की फासीवादी सरकार ने देबलिना चक्रवर्ती और अभिजन सरकार को विशेष निशाना बनाया? जादवपुर विश्वविद्यालय की छात्रा रही देबलीना और छात्र अभिजन हमेशा विस्थापन विरोधी आन्दोलनों के साथ साथ जनता की प्राकृतिक सम्पदा को सीपीएम नीत वाम सरकार और अब ममता बनर्जी नीत शासन द्वारा लूटे जाने के खिलाफ संघर्ष में आगे आकर लड़ते रहे हैं।
इस बार दोनो नोनाडांगा के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे छात्रों और बुद्धिजीवियों में सक्रिय रूप से शामिल थे। इन लोगों को 30 मार्च,2012 को राज्य बलों ने जबरन उजाड़ दिया था और उनके घरों को ढहा दिया था। नोनाडांगा में ज्यादातर वे लोग बसे हुए थे, जो सुन्दरबन में आए चक्रवात से उजड़ गए थे या जिन्हें ‘विकास’ नामक मानव निर्मित आपादा के कारण कोलकाता की कई झुग्गी बस्तियों से उजाड़ दिया गया था। नोनाडांगा की 80 एकड़ जमीन से सभी को उजाड़ कर इसे रियल एस्टेट के हवाले की सोच सीपीएम के जमाने में भी थी। ममता राज में घट रही घटनाएं उसी की निरन्तरता ही है, जो उसकी जनपक्षीय लफ्फाजी का पर्दाफाश करती हैं। विस्थापित करने के बाद राज्य बलों ने नोनाडोंगा के विस्थापितों और उनके समर्थकों पर बार बार हमला किया, जिसमें सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया और  4, 8, 9, 12 और 28 अप्रैल को लाठीचार्ज किया। जनता की चीख पुकार और प्रदर्शनों के बाद देबलीना और अभिजन के अलावा सभी को रिहा कर दिया गया। ये दोनों अभी भी जेल में हैं।
देबलीना और अभिजन छात्रों के अच्छे उदाहरण हैं जो समझ बुझ कर क्लास रूम की चार दिवारी से बाहर निकल गए और उत्पीड़ित जनता के रोजमर्रा की जिन्दगी की कठोर सच्चाईयों से जुड गए चाहे वो सिंगुर हो या नोनाडोंगा। जनता की सेवा करने की और जनता के संघर्ष से जुड़कर नया संसार रचने की इस तरह की राजनीतिक संस्कृति का राजनीतिक रूप से सामना करने में ममता बनर्जी अक्षम हैं और इसलिए उसनें कानून से खिलवाड़ करने वाली पुलिस और नौकरशाहों का प्रयोग कर इन नौजवानों पर झूठे केस लगवाकर उन्हें अपराधी घोषित करने के लिए अपनी सारा जोर लगा दिया।
देबलीना जादवपुर विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल रिलेशन डिपार्टमैंट की छात्रा थी। उसने जनवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए जनता का साथ देने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वह सिंगुर के जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी जिसने ममता के सत्ता में आने की जमीन तैयार की थी। जब नंदीग्राम की जनता ने खुंखार सलेम औद्योगिक समूह की सेज और रसायन कारखाना बनाने के खिलाफ आवाज बुलंद की तो वह वहां चली गई और वहां उसने जमीन व घरों से विस्थापन के खिलाफ बनी भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी द्वारा छेड़े गए शानदार जनसंघर्ष में भागीदारी की।  मैतिंगनी महिला समिति का निर्माण करने में उसकी महती भूमिका थी। एमएमएस महिलाओं का मंच था जो पितृसत्ता के खिलाफ, सेज और साम्राज्यवादी पूंजी के खिलाफ और सीपीएम हरमद के खिलाफ लड़ा था। यह लक्ष्मण सेठ- बिनोय कनोर- सुशान्तो घोष-तपन सुकुर- नाभा सामांता के गिरोह के रोजमर्रा के हमलों के खिलाफ जारी संघर्षों से जुड़ी रही।
सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी ने अपने गुस्से का रूख जनांदोलनों के खिलाफ कर दिया और मैतंगिनी महिला समिति को ‘शैतान बिग्रेड़’ का तमगा देकर उसे बदनाम करने का अभियान शुरू कर दिया। पुलिस ने हर बार की तरह देबलीना को माओवादी करार दिया जिसे मनमर्जी से हिरासत में लिया जा सकता है, यातनाएं दी जा सकती है, प्रताडित किया जा सकता है और बंदी बनाया जा सकता है।
यह शीशे की तरह साफ है कि गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने देबलिना को क्रूरतापूर्वक मानसिक और शारिरिक यातनाएं दी होंगी और उसे सालों साल बंदी बनाए रखने के लिए जेल भेजा होगा। क्या हमें पश्चिम बंगाल की इस क्रूर, निर्दयी और जनविरोधी मुख्यमंत्राी द्वारा किए जा रहे अन्याय को जारी रहने की अनुमति देनी चाहिए। देबलीना ने अनुचित बंदी का विरोध करने के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी है।
अभिजन सरकार इंजीनियर है और जादवपुर विश्वविद्यालय के मैटलैरजी डिपार्टमैंट में शोधकर्ता है। वह छात्रा संगठन आरएसएफ का सदस्य है और कई सालों से पश्चिम बंगाल के जनांदोलन में सक्रिय भागीदार है। वह कोलकाता से निकलने वाली पत्रिका ‘टूवर्डस ए न्यू डॉन’ का सम्पादक है, जो पुरे भारत में बाटा जाता है। अभिजन संहति समूह से भी जुड़ा हुआ है और उसने लालगढ़ में नारी इज्जत बचाओ कमेटी पर पुलिस दमन की रिपार्ट भी भेजी थी। 2010 को भी अभिजन को पश्चिम बंगाल सीआईड़ी ने उस समय हिरासत में ले लिया था जब वह दिल्ली में आईसीएसएसआर का साक्षात्कार देने जा रहा था। उस समय उससे गहन पुछताछ की गई थी कि नंदीग्राम जैसे जनांदोलनों में उसकी क्या भूमिका है। 2011 में उसे एक बार फिर खुंखार संयुक्त बलों द्वारा एक डाक्टर के साथ हिरासत में ले लिया जब वे लालगढ़ के दूर दराज के इलाके में मैडिकल कैम्प लगाने गए थे। परन्तु दोनों मामलों में पुलिस उस पर कोई केस दर्ज नहीं कर सकी और उसे छोड़ने पर मजबूर हो गई। इस बार उस पर हल्दिया का एक झूठा केस दर्ज किया गया है। दमनकारी देशद्रोह कानून और आर्म्स एक्ट उस पर चस्पा कर दिया गया है।
हम देश के सभी न्याय पसन्द और आजादी पसंद लोगों से अपील करते हैं कि देबलिना और अभिजन को झूठे केसो के आधार पर बंदी बनाए रखने के खिलाफ आवाज बुलंद करें तथा उनकी बेशर्त रिहाई की मांग करें। उनका एकमात्रा अपराध है कि वो नोनाडांगा की जनता के साथ खड़े रहे और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की। सचेतन विद्यार्थी होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम असहमति के अधिकार की रक्षा के लिए खड़े हो। देबलीना और अभिजन की बेशर्त रिहाई की मांग नोनाड़ांगा के लड़ाकू लोगों की इच्छाशक्ति को ओर मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। राज्य द्वारा देबलीना और अभिजन के इर्द गिर्द निर्मित किया गया ‘गैरकानूनी’ और ‘अवैध’ का धुंधलका वास्तव में उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की सरकारी नीति की खिलाफत कर रही उत्पीडित जनता से हाथ मिलाने के छात्रों के अधिकार का हनन है। हमें जनवादी आंदोलनों का मुंह बंद करने की फासीवादी नीतियों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। हम अन्य विश्वविद्यालयों के सभी छात्रों और बुद्धिजीवियों से अपील करते हैं कि नोनाडंगा की जनता के समर्थन में और देबलीना और अभिजन की बेशर्त रिहाई के के लिए हो रहे संघर्ष में शामिल हों। हम नोनाडांगा के विस्थापितों के संघर्ष के प्रति एकजुटता में उनके लिए राहत सामग्री एकत्र करें
-जादवपुर विश्वविद्यालय के जागरूक छात्रा और एल्यूमनी

शनिवार, 26 मई 2012

देशी कारपोरेट : विदेशी नियंत्रण


हाल के सालों में जबरन जमीन अधिग्रहण के प्रयास के खिलाफ देश भर में असंख्य संघर्ष फूट पड़े हैं। कलिंगनगर, पोस्को, काशीपुर, नियमगिरी, नंदीग्राम, सिंगुर, जैतापुर और यमुना एक्सप्रैस वे जैसे विख्यात संघर्ष तो जाने पहचाने हो गए हैं। जैसे ही ग्रामीणों ने जमीन के जबरन अधिग्रहण का प्रतिरोध करते हैं, उन्हें पुलिस, अधिकारियों तथा भाड़े के गुंडों का सामना करना पड़ता है। हर मामले में इन दमनकारी बलों के पीछे कारपोरेशन का हाथ होता है जोकि जमीन हथियाना चाहते हैं - जैसे टाटा स्टील, पोस्को, हिंडल्को, वेदांता, सलीम ग्रुप, टाटा मोटरस्, न्यूकलियर पावर कारपोरेशन ऑफ इंडिया, जेपी इंफ्राटेक आदि। और भूमंडलीकरण और वित्तियकरण (या वित्तिय भूमंडलीकरण) के वर्तमान युग में कारपोरेशन इसके प्रमोटरस् (जैसे टाटा, बिडला, अम्बानी आदि) के हितों का ही प्रतिनिध्ीत्व नहीं करता बल्कि विदेशी हितों का प्रतिनिधित्व भी करता है। ये हित कम दर्शनीय हैं और इन पर शायद ही टिप्पणी की जाती है, परन्तु ये उनके लिए कम महत्वपूर्ण नहीं होते हैं।
ये वित्तिय हित कई रूपों में देखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर कोरिया की कम्पनी पोस्को, जिसकी जमीन अधिग्रहण की कोशिशों के खिलाफ ओडिशा में तीव्र विरोध हो रहा है, में सबसे बड़ा शेयर धारक न्यू यॉर्क का बैंक है। इसके अलावा अमेरिका के अन्य निवेशको का भी इसमें काफी बड़ा हिस्सा है। हम कुछ अन्य उदाहरणों की बात करते हैं।
जैतापुर का परमाणु संयत्रा सार्वजनिक क्षेत्रा की कारपोरेशन न्यूकलियर पावर कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा बनाया जा रहा है। परन्तु इसके रियक्टर फ्रांस की कम्पनी एरेवा द्वारा दिए जाएंगें और वित्त भी फ्रांस ही देगा।
ओडिशा के नियमगिरी के डोंगरिया कोंध आदिवासियों से जमीन हथियाने की कोशिश वेदांता रिसोर्सिस कर रही है। वेदांता का उद्गम भारत में हुआ। परन्तु इसका मुख्यालय लंदन में है और यह लंदन स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है। इसके नियंत्रक हित वोल्कान इंवेशटमैंट के पास है जोकि अनिल अग्रवाल और उसके परिवार के सदस्यों के नियंत्राण वाली बहामा की निवेश कम्पनी है। बाकी का निवेश अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के पास हैं।
काशीपुर में अािदवासियों को जबरन उजाड़ने वाली औन उनका दमन करने वाली कम्पनी उत्कल एल्यूमिना आदित्य बिड़़ला घराने के नियंत्राण वाली हिंडल्कों और कनाड़ा की कम्पनी एल्कान का संयुक्त उद्यम है, जिसमें उनका शेयर क्रमशः 55 प्रतिशत और 45 प्रतिशत है। इसके आगे देखें तो बिड़ला के नियंत्रण वाली कम्पनी और ट्रस्टों में हिंडल्को का शेयर मात्रा 32 प्रतिशत है, जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास 31 प्रतिशत हिस्सा है (जिसमें मागन गारंटी ट्रस्ट ऑफ न्यूयॉर्क के पास इसका 9.3 प्रतिशत शेयर है) और अन्य 8.3 प्र्रतिशत भी विदेशियों के पास ग्लोबल डिपोसिटरी रिसिप्ट (जीडीआर) के रूप में है। दूसरे शब्दों में कहे तो हिंडल्कों में विदेशी हिस्सेदारी बिड़ला की हिस्सेदारी से अधिक है।
टाटा की कम्पनी और ट्रस्ट में टाटा मोटरस् का शेयर 34  प्रतिशत है। विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास इसका 23 प्रतिशत हिस्सा है। और विदेशों में अमेरिकन डिपोसिटरी शेयर और ग्लोबल डिपोस्टरी शेयर, जोकि क्रमशः न्यूयार्क और लक्समबर्ग स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, के रूप में जारी किए गए शेयरों के रूप में 19 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची गई है। इस प्रकार टाटा मोटरस् में विदेशी हिस्सेदारी 42 प्रतिशत से अधिक है यानि कि प्रमोटर की हिस्सेदारी से भी अधिक। टाटा मोटरस् ने काफी मात्रा में विदेशी कर्ज भी लिया हुआ है।
टाटा स्टील में विदशी संस्थागत निवेशकों का मालिकाना 17 प्रतिशत है और इसके अलावा 2.5 प्रतिशत पर ग्लोबल डिपॉस्टरी रिसिप्ट के रूप में विदेशी कब्जा है। परन्तु इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि टाटा स्टील बहुत अधिक विदेशी कर्ज लिया है, और इस कर्ज का बड़ा हिस्सा एंग्लो-डच स्टील कम्पनी कोरस को खरीदने के लिए लिया गया था। मार्च 2011 तक शुद्ध कर्जा 46,632 करोड रूपये था जिसमें से अधिकतर विदेशी मुद्रा का उधार है। इस बात पर गौर करना चाहिए कि टाटा स्टील के भारत के अन्दर मुनाफे में चलने वाले कारोबार से यह कर्ज उतारा जा रहा है।
इंटरनेट पर खोजने पर हमें ब्राईट इक्विटी लिमिटिड के बारे में कोई सूचना नहीं मिली। इसी कम्पनी के जरिए सलीम ग्रुप ने पश्चिम बंगाल में निवेश किया है। हालांकि इसका कोई महत्व नहीं है कि सलीम ग्रुप की होल्डिंग कम्पनी हांग कांग आधारित फर्स्ट पैसिफीक कम्पनी लिमिटिड है जिसके जरिए वह एशिया के भीतर टैलिकम्यूनिकेशन, आधारभूत ढ़ांचें, खाद्य उत्पादों और प्राकृतिक संसाधनों में किए गए निवेश को नियंत्रित करता है। फर्स्ट पैसिफिक के हिस्सेदारी का केवल 11.3 प्रतिशत ही एशिया में है, जबकि इसमें उत्तरी अमेरिका  और यूरोप की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत है।
इस तरह के अनेको उदाहरण हैं। जैसे कि मुम्बई एयरपोर्ट का निजीकरण होने के कारण जीवीके पावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटिड मुम्बई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटिड को संचालित करता है जिसमें उसका हिस्सा ज्यादा है। विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास जीवीके पावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटिड के 27 प्रतिशत शेयर हैं। इसके बदले में जीवीके ने 4 लाख लोगों (जोकि 40 सालों से एयरपोर्ट के इर्द गिर्द बसी झुग्गी बस्तियों में रह रहे हैं) के ‘पुर्नवास’ (विस्थापन पढ़ें) का काम रियल एस्टेट कम्पनी हाउसिंग डैवेलपमैंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटिड(एचडीआईएलं) को दिया है। यह अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक यह भारत की सबसे बढ़ी विस्थापन और पूर्नवास परियोजना है। (जीवेके के अपनी प्रकाशित योजना के अनुार यह झुग्गी बस्ती की यह 276 एकड़ जमीन शापिंग मॉल, होटल और अन्य व्यवसायिक रियल एस्टेट के विकास की आवश्यक है। जिसे एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के नाम पर लिया जा रहा है।)
एचडीआईएल पर रमेश वधवा का नियंत्राण है, जिसका नाम फॉर्ब्स करोड़पतियों की 2010 की सूची में शामिल था, और वह भारत के सबसे अमीर 50 लोगों में शामिल है। हालांकि बधवा, उसके परिवार और उसकी विभिन्न कम्पनियों का एचडीआईएल में हिस्सा मात्रा 38.6 प्रतिशत है, जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों का हिस्सा 42.5 प्रतिशत तक है। एचडीआईएल विदेशी संस्थाओं को नए शेयर बेचकर परियोजना के लिए धन की उगाही कर रही है (जिसे वे ‘क्वालिफाईड संस्थागत प्लेसमैंट का नाम दे रहे हैं)। एचडीआईएल की इस परियोजना से अनुमानित भारी आय की ओर निवेशक आकर्षित हो रहे हैं।
दिल्ली मुम्बई इंडस्टरियल कॉरिडॉर, जोकि शायद भारत की सबसे बड़ी आधारभूत परियोजना होगी या कहें कि जमीन की सबसे बड़ी लूट होगी, पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। दिल्ली मुम्बई कॉरीडॉर डेवलपमैंट कारपोरेश (डीएमआईसीडीसी) ने देश की वित्तिय राजधानी और राजनैतिक राजधानी के बीच में 1483 किलोमीटर लम्बा कॉरीडॉर बनाया जाएगा जोकि 5000-5500 वर्गीय किलोमीटर क्षेत्राफल में बनेगा। इस कॉरीडॉर के इर्द गिर्द 24 औद्योगिक शहर विकसित किए जाएंगे - जोकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रा, यूपी, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में बनाए जाएंगें। पहले दौर में 2018 तक 90 बिलियन डालर की लागत से पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप में 2000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रा में सात शहर विकसित करने की योजना है। इस प्रस्ताव में तीन बंदरगाह, छः हवाईअड्डे, एक तीव्र गति की माल वाहक लाईन, और एक छ लेन की बगैर कटाव का एक्सप्रैस वे बनान शामिल है। इसके लिए भारी मात्रा में जमीन की जरूरत हेागी -2000 वर्ग किलोमीटर 5 लाख एकड़ होता है जोकि दिल्ली के आकार का तीगुणा होगा। जूलाई,2011 में वित्त मंत्राी हर शहर को 2500 करोड़ देने के लिए सहमत गए यानि इन नए शहरों के लिए कुल मिलाकर सत्रह हजार पांच सौ करोड़ रूपया दिया जाएगा। इस परियोजना के लिए धन भारत सरकार के अलावा भारतीय कम्पनियों में जापानी निवेशक  डिपास्टरी रिसिप्ट के जरिए और जापानी कम्पनियों के सीधे निवेश के जरिए एकत्रा किया जाएगा। साथ ही जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी (जेइसीए) से कर्ज भी लिया जाएगा। जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी के मुताबिक ‘धन का 80 प्रतिशत हिस्सा जापानी कर्ज और सहायता से आएगा।’ इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जापानी कम्पनियों को इसका ठेका मिलेगा। दो शहरों के बीच तीव्र गति वाली रेल लाईन जापानी तकनीक से निर्मित की जाएगी और इसके लिए रेलवे को जापानी कर्ज मिलेगा। कई भारतीय और जापानी कम्पनियां संयुक्त उद्यम संधि, पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी हैं। एक अधिकारी के अनुसार ‘मितसुबिसी, हिताची, तोसिबा और जेवीसी इस परियोजना के लिए हाथ मिला चुकी हैं।’
पंजाब में पुलिस लाठी चार्ज में एक किसान की मौत होने का समाचार आया है। यह किसान मानसा जिले में प्रस्तावित 1,350 मैगावाट की क्षमता वाला ताप विद्युत कारखाना बनाने के लिए जबरन जमीन अधिग्रहण करने के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल था। निजी कम्पनी, पोयना पॉवर इस परियोजना को लगाएगी। यह कम्पनी इंडियाबुलस पॉवर की मातहत कम्पनी है। अनेको अनियमितताओं और अनिश्चितताओं के बावजूद राज्य सरकार बल प्रयोग करके जमीन अधिग्रहण पुरा करने पर उतारू है। विदेशी निवेशकों के पास इंडियाबुलस् पॉवर का 32.8 प्रतिशत हिस्सा है, इसके अलावा 58.8 प्रतिशत हिस्सा इंडियाबुलस् रियल एस्टेट लिमिटिड़ के पास है। इंडियाबुलस रियल एस्टेट लिमिटिड़ में विदेशी निवेशक का मालिकाना 51.6 प्रतिशत है। इस तरह इंडियाबुल पॉवर में विदेशी हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है।
ये कुछेक उदाहरण है। ये कई गुणा हो सकते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था कई तरीकों से विशालकाय निजी कारपोरेट क्षेत्र को जमीन और प्राकृतिक सम्पदा लूटवा रही है। हमें इस परिघटना के पति सचेत रहने और इसका अध्ययन करने की जरूरत है।
 (ऐस्पेक्ट आफ इंडियन इकनोमी से साभार)

शुक्रवार, 25 मई 2012


यॉन मिर्दल की भारत यात्रा प्रतिबंधित लगाने पर क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा का वक्तव्य
क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा (आरडीएफ)
सम्पर्क : revolutionarydemocracy@gmail.com
24 मई 2012
भारतीय राज्य ने असहमति और आलोचना की सभी आवाजों पर शिकंजा कसने की हालिया फासीवादी चाल के तहत स्वीडन के विख्यात यॉन मिर्दल पर भविष्य में भारत की यात्रा करने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है, क्योंकि वह भारत की जनता के संघर्षों का समर्थन करते हैं। हाल ही में राज्य गृह मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में ब्यान दिया कि यॉन की भविष्य की हर यात्रा पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाया जाएगा, क्योंकि उन्हें सीपीआई (माओवादी) को सलाह देने और उनके लिए प्रचार करने का दोषी पाया गया है।
ऐतिहासिक तौर पर पूरी दूनिया में जनपक्षीय बुद्धिजीवी और स्कॉलर मूलभूत अधिकारों के लिए होने वाले जनांदोलनों के साथ हमेशा खड़े रहे हैं। यॉन मिर्दल भी जिंदगीभर साम्राज्यवादी विरोधी आन्दोलनों और संघर्षों के साथ तन कर खड़े रहे हैं। वियतनाम पर अमेरिका के हमले के खिलाफ उन्होनें युरोप और स्वीड़न में आंदोलन का नेतृत्व किया था और फिलिस्तीन, अफगानिस्तान, चीन और दुनिया भर के चलने वाले जनांदोलन के समर्थन में भी खुलकर लिखा है। उन्होनें कई बार भारत का दौरा किया है और भारतीय स्थितियों जन प्रतिरोध को समझा है और उसके बारे में लिखा है। सन् 2010 में 83 वर्ष की उम्र में उन्होनें दण्डकारण्य का विस्तृत दौरा किया, ताकि आपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर जनता पर छेड़े गए युद्ध के खिलाफ जारी जनप्रतिरोध और जल-जंगल-जमीन के लिए आदिवासियों के व्यापक आंदोलन का सीधा अनुभव प्राप्त किया जा सके। वहां वे सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष नेताओं से मिले और पार्टी के महासचिव का इंटरव्यू लिया।
इसी अनुभव के आधार पर उन्होनें रेड़ स्टार अॅवर इंडिया - इमप्रेशन, रिफलेक्शन एंड डिस्कशन वेन द रिचेड ऑफ अर्थ राइजिंगनाम से किताब लिखी। यह किताब भारत में काफी बिकी है और इसका दूसरा संस्करण निकलने जा रहा है। साथ ही कई क्षेत्रिय भाषाओं जैसे बंगाली, तमिल, तेलगू, पंजाबी में इसका अनुवाद किया जा रहा है तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद करने के अनुबंधों पर चर्चा चल रही है।
किताब काफी विश्लेषणात्मक है और इसमें भारतीय राज्य की गैर-जनवादी और जनविरोधी नीतियों और इसके खिलाफ खड़े हो रहे जनप्रतिरोध की तीखी आलोचना की गई है। इसी साल इस किताब का भारत में लोकार्पण करने के लिए उन्हें कोलकाता पुस्तक मेले में बुलाया गया। इसके बाद कोलकाता, हैदराबाद, लुधियाना और दिल्ली में उनके कई लैक्चर हुए। दिल्ली में जनता पर युद्ध के खिलाफ मंच ने उन्हें राजकीय दमन के मामले पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने उन्हें नवीन बाबु यादगार में प्रथम लैक्चर देने के लिए आमंत्रित किया, ताकि नवीन बाबु की शहादत को याद किया जा सके जोकि जेएनयू के छात्र थे और उन्हें 10 फरवरी, 2001 में उन्हें आंध्र प्रदेश की राज्य बलों ने मार दिया था।
गृह मंत्रालय को यॉन के इस सारे कार्यक्रम के बारे में जानकारी थी और उनके सारे लैक्चर और लेख प्रकाशित हुए हैं और ये सारे सार्वजनिक हैं। गृह मंत्री की इस सारी चिल्ल-पौं का केवल एक ही कारण है कि वो यॉन मिर्दल द्वारा उठाए गए मुद्धों, चिंताओं और तीखी आलोचनाओं का सामना नहीं कर पा रहे हैं और वे इतने विख्यात स्कॉलर हैं कि उनकी आलोचना को दुनियाभर में गंभीरता से लिया जाएगा। दिल्ली में दिए लैक्चर में उन्होनें साफतौर पर कहा कि जनता पर यह युद्ध मात्र आर्थिक कारणों, लालच और मुनाफे के लिए छेड़ा गया है। इस सच को भारत की सरकार ने सरकारी दस्तावेजों में भी लिखा है।
इस साधारण सच को यॉन जैसे विख्यात और स्वीकार्य व्यक्ति द्वारा दोहराना भारत की सरकार स्वीकार नहीं कर पा रही और इसीलिए वह चिंतित हो गई। यॉन ने खुद सामने आकर अपनी भारत यात्रा को उचित ठहराया है और भारत सरकार के प्रचार को खारिज करते हुए अपने उद्देश्य को साफ किया है। स्वीडन के विदेश मंत्री को लिखे पत्र में उन्होनें साफ-साफ लिखा है कि भारत में हो रही तीखी चर्चा और बहस पश्चिमी देशों के हमारे मीडिया में दिखलाई नहीं देती है। यह किसी भारत के सरकारी सैंसरसिप के कारण नहीं हो रहा है (जैसा कि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश ने भारत में किया था)। यह हमारी मीडिया के सम्पादकीय प्रहरियोंकी सैंसरशिप के कारण हो रहा है (और भारत में हमारे पत्रकारों की खुद की सैंसरशिप के कारण हो रहा है)।
और उनका यह मानना सही है कि दुनियाभर के कार्यकर्ताओं से सम्पर्क करना और समझ को साझा करना आज की समय की मूल जरूरत है, ताकि व्यापक साम्राज्यवाद विरोधी एकजुटता कायम की जा सके। यॉन मिर्दल पर प्रस्तावित प्रतिबंध असहमति और विरोधी आवाजों पर फासीवादी शिकंजा कसने की नीति का ही हिस्सा है।
भारतीय राज्य विरोध को अपराधिक ठहराने के लिए और असहमति और प्रतिरोध की आवाजों और बलों को दबाने के लिए कई दमनकारी उपाए सिलसलेवार लागू कर रहा है। एक तरफ, भारतीय राज्य अर्धसैन्य, सैन्य, पुलिस बलों, वायुसेना और गुंडा गिरोहों का प्रयोग करके जनता पर खुनी युद्ध छेड़े हुए है और दूसरी ओर, यह राजनैतिक पार्टियों, जनसंगठनों, सांस्कृतिक मोर्चो पर प्रतिबंध व रोक लगाकर और झूठे केसों में जनता को गिरफ्तार कर रही है। साथ ही, जनांदोलनों को बदनाम करने के लिए कारपोरेट मिडिया के माध्यम से झूठा प्रचार करके मनोवैज्ञानिक युद्ध चला रहा है।
भारत का खुफिया विभाग इंटेलिजेंस ब्यूरों महिला कार्यकर्ताओं को परेशान करने के लिए अपमानजनक झूठे आडियों, विडियों और ईमेल भेजने जैसें गंदे तरीके अपना रहा है। यॉन पर प्रस्तावित प्रतिबंध लगाना आलोचना की सशक्त आवाज को चुप कराने का भारत के राज्य का एक और प्रयास है। भारत और दुनियाभर की प्रगतिशील और जनवादी ताकतों को भारतीय राज्य के इस फासीवादी तरीके के खिलाफ आवाज बुलंद करनी चाहिए। यॉन मिर्दल पर प्रस्तावित प्रतिबंध को तुरंत प्रभाव से वापिस लेना चाहिए।
अध्यक्ष वरवरा राव 09676541715
महासचिव राजकिशोर 09717583539