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बुधवार, 30 मई 2012


उठो! प्रतिरोध करो! मुक्त हों!

क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा (आरडीएफ) 

सम्पर्क: revolutionarydemocracy@gmail.com
क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा प्रस्तावित राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी सैंटर (एनसीटीसी) बनाने की कड़े शब्दों में निंदा करता है। भारतीय राज्य एनसीटीसी का निर्माण करने की योजना बना रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवाद के दिशा-निर्देश के अनुसार बनने वाली यह फासीवादी संस्था आतंकवाद से लड़ने के नाम पर असहमति की सभी आवाजों को कठोरता से दबाएगी और विरोध की हर आवाज को अपराधी घोषित कर देगी। एनसीटीसी केन्द्र की संस्था होगी और इसके आफिसरों को दमनकारी यूएपीए के तहत गिरफ्तार करने, तलाशी लेने और जब्ती करने की शक्तियों से लैस किया जाएगा। साम्राज्यवादी ताकतों के समक्ष पूर्णतया नतमस्तक भारतीय राज्य को ऐसे दमनकारी दंड सहिंता की जरूरत है, ताकि प्राकृतिक सम्पदा की लूट, और ‘विकास’ के नाम पर जिन्दगी और आजीविका के विनाश के खिलाफ तीव्र होते जनप्रतिरोध को वह दबा सके।
अमेरिका कुछ समय से भारत की ‘आंतरिक सुरक्षा’ तय करने में केन्द्रीय भूमिका निभा रहा है। सन् 2000 में एनडीए सरकार ने ‘अमेरिकी हितों’ की निगरानी करने के लिए नई दिल्ली में एफबीआई की पहली चौकी बनाने की अनुमति दी थी। 2005 में अमेरिका-भारत रक्षा सम्बंधों बारे नए चौखटा समझौते तथा 124 न्यूकलियर समझौते पर हस्ताक्षर करके इसे ओर बढ़ावा दिया गया। यह एनसीटीसी भी भारत की सरजमीं पर अमेरिकी आतंकवाद को संस्थागत करने के लिए सीधे अमेरिकी मार्गदर्शन और निर्देश के तहत बनाया जा रहा है। अमेरिका की ‘आतंकवाद विरोधी नीति’ सूचना एकत्रीकरण के ऐसे तरीके अपनाने, कवर्ट आपरेशन चलाने, गैर-राजकीय बलों के प्रयोग करने, ड्रोन से हमला करने की खुले आम घोषणा करती है और अमेरिका की सेना और खुफिया विभाग इन सारी कार्रवाईयों को पूर्ण समर्थन दे रहा है। एनसीटीसी भारतीय राज्य के अमेरिका के साथ गठजोड़ का ही उत्पाद है।
यह संस्था ‘आंतरिक सुरक्षा’ सम्बंधी मामलों की सारी शक्तियों को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के हाथों में केन्द्रीत कर देगा और संघीय प्रणाली के दिखावे मात्र का भी खात्मा कर देगा। कानून और व्यवस्था, जोकि राज्य सरकार का मामला है, पूर्णतया केन्द्र के हाथ में चला जाएगा। इसका परिणाम शक्ति के खतरनाक केन्द्रीकरण में होगा। पुलिस महकमें सहित राज्य सरकार की सारी आर्थिटी और अधिकारी एनसीटीसी को सूचना, दस्तावेज और रिपोर्ट देने के लिए बाध्य होंगें। इससे एनसीटीसी और आईबी सर्वोच्च और अनियंत्रित शक्ति से लैस हो जाएंगें और यह दक्षिणी एशिया में सुरक्षा राज्य निर्माण के इतिहास में खतरनाक होगा। वैसे ही भारत में राज्य सरकारों को बेहद सीमित शक्तियों मिली हैं, जिसकी स्थिति किसी नगरपालिका से ज्यादा बेहतर नहीं हैं, क्योंकि प्रशासनिक और वित्तिय नियंत्रण हमेशा से ही एकदम केन्द्रीकृत केन्द्रीय सरकार के हाथों में निहित है। अब एनसीटीसी बनने से इन सीमित शक्तियों पर एक ओर हमला किया जाएगा और राज्य सरकारों की सीमित शक्तियों पर भी रोकथाम लगा दी जाएगी।
राज्य द्वारा असहमति की आवाजों और उत्पीड़ित जनता से दुर्व्यवहार करने और उनका अपराधीकरण कई बार किया गया है। यूएपीए, मैकोका, गुजकोका, पीएसए जैसे दमनकारी कानूनों के जरिए भारतीय राज्य मूलभूत अधिकारों, जमीन, आजीविका, आत्मसम्मान और राष्ट्रीयता के लिए लड़ाई कर रही जनता पर फासीवादी दमन ढहा रहा है। साथ ही दलित, आदिवासी जैसी उत्पीड़ित जनता, मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को इन दमनकारी कानूनों का प्रयोग कर व्यापक पैमानें पर केसों में फंसाया जा रहा है।  
कई राजनैतिक संगठनों, सांस्कृतिक समूहों और जनसंगठनों पर फासीवादी राज्य ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। उनके कार्यकर्ताओं को निरंतर गिरफ्तार किया जा रहा है, उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं, झूठे केसों में फंसाया जा रहा है, यहां तक कि झूठी मुठभेड़ों में हत्या कर दी जाती है। मुस्लमानों को तंग करने के लिए राज्य भारतीय मुजाहिदिन जैसे बोगस संगठन भी बना रहा है तथा हजारों मुस्लमानों पर ‘आतंकवादी’ बताकर झूठे केस दर्ज कर दिए हैं। केन्द्रीय और पूर्वी भारत में राज्य ने आपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर जनता पर खुनी जंग छेड़ रखी है। अर्धसैन्य बलों, इलिट बलों, विजिलैंट गिरोह सहित सेना और वायू सेना को हजारों की संख्या में तैनात किया गया है ताकि वहां बसने वाले आदिवासियों को उनकी जमीन और जंगलों से उजाड़ा जा सके और इस खनिज सम्पंन क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की शिकारगाह बनाया जा सके। कश्मीर और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में भी भारतीय राज्य ने राष्ट्र और आत्मनिर्णय की लड़ाई लड़ रहे लोगों पर फासीवादी युद्ध छेड़ा हुआ है। हाल ही में झारखंड सीआरपीएफ ने मांग की है कि उन्हें आफ्सा की ‘ढ़ाल’ दी जाए ताकि उन्हें मनमर्जी से हत्या करने, यातना देने, नागरिकों को लूटने की खुला लाईसैंस मिल जाए। एनसीटीसी भारतीय राज्य के हाथ में दमन का एक ओर खतरनाक हथियार होगा जिसके जरिए वह जनता को ‘आतंकी’, ‘अतिवादी’ ठहराकर उनका दमन करेगा।
पश्चिम बंगा की ममता बनर्जी और ओडिशा के नवीन पटनायक के नेतृत्व में कई गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री एनसीटीसी को राज्य के संघीय ढ़ांचे के खिलाफ बताकर केन्द्र सरकार से नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं। यह एक भद्दा मजाक है क्योंकि ये सभी मुख्यमंत्री विषेशतः ये दोनों केन्द्रीय गृहमंत्रालय के साथ मिलकर फासीवादी राजकीय दमन अभियान चला रहे हैं। चिदम्बरम ने ‘नक्सलवाद से प्रभावी तरीके से निपटने’ के लिए ममता बनर्जी की खुलेआम प्रशंसा की है। उसने कोलकाता के नजदीक ‘राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड़’ (एनएसजी) हब की आधारशिला रखी है और चुनाव पूर्व वायदों के विपरित उसने जंगलमहल से अर्धसैन्य बलों को वापिस नहीं बुलाया और न ही दमनकारी यूएपीए कानून के तहत दर्ज केसों को निरस्त किया। सत्ता में आने के बाद उसने राजनैतिक बंदियों को रिहा करने के अपने वायदे को पूरा करने की बजाए जगंलमहल के सैंकड़ों ग्रामीणों को जेल में बंद कर दिया तथा सलवा जुडूम की तर्ज पर राज्य समर्थित विजिलैंट गिरोह बनाना शुरू कर दिया। उसकी पार्टी के गुंडें अनाधिकारिक तौर पर भैरव वाहिनी बनाकर जंगलमहल के लोगों पर हमला कर रहे हें। सीपीआई (माओवादी) के नेता और पोलित ब्यूरों सदस्य किशनजी की झूठी मुठभेड़ में हत्या उसके फासीवादी शासन का नृशंस नमूना है। इसी तरह, नवीन पटनायक ओडिशा में पोस्को, वेदांता और अन्य विशालकाय कारपोरेट के खिलाफ लड़ रही जनता का दमन करने के लिए जिम्मेवार है। कलिंगनगर में विरोध प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों की हत्या, नारायणपट्टना में लड़ाकू जनता पर नृशंस हमला और चासी मूलिया आदिवासी संघ (सीएमएएस) के अध्यक्ष विडेका सिंघन्ना की हत्या उसी के खाते में दर्ज है। कई सीएमएएस कार्यकर्ताओं पर उसने यूएपीए के तहत केस दर्ज करवाएं हैं। इसी तरह नरेन्द्र मोदी, जयललिता, प्रकाश सिंह बादल जैसे बेजेपी और गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी राज्य सरकारों की शक्तियों पर रोकथाम लगाने के नाम पर केन्द्र सरकार से नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के फासीवादी बेजेपी मुख्यमंत्री रमण सिंह ने एनसीटीसी को कुछ संशोधनों सहित स्वीकार कर लिया है। बेजेपी के अन्य मुख्यमंत्रियों भी जनता पर दमन करने, विरोध प्रदर्शन करने वाली जनता पर गोली चलाने का आदेश देने के कारण फासीवादी शासन के लिए कुख्यात हैं। शासक वर्ग के कई एजेंट एनसीटीसी के खिलाफ इसलिए आवाज नहीं उठा रहे कि उन्हें जनता के कल्याण की कोई चिंता हो या वे ‘संघीय ढ़ांचे को बचाना’ चाहते हैं, बल्कि वे असहमति की आवाजों का दमन करने के लिए ज्यादा अथार्टी चाहते हैं और ‘आंतरिक सुरक्षा’ के नाम पर आने वाली अथाह धनराशि में बड़ा हिस्सा चाहते हैं। 2008 में जब यूएपीए में खतरनाक संशोधन किए जा रहे थे तो छद्म-वाम सहित किसी भी सांसद ने संसद में इस पर आपत्ति नहीं की। भारत के सभी संसदीय दलों का कारपोरेट लूट में हिस्सा है और इसलिए वे जनता पर युद्ध को तीव्र करने और सभी तरह की असहमतियों को गैरकानूनी और अपराधिक ठहराने के केन्द्र सरकार के हर प्रयास का समर्थन करते हैं और उन्हें लागू करते हैं। संसाधनों की कारपोरेट लूट को बढ़ावा देने के लिए जनता पर छेड़ी गई खुनी और नृशंस जंग का और असहमति की सभी आवाजों को दबाने के राज्य प्रयासों का प्रतिरोध करने के लिए देश की सभी प्रगतिशील और जनवादी ताकतों को एकजुट होना चाहिए।
-एनसीटीसी वापिस लो और दमनकारी यूएपीए को निरस्त करो।
-आपरेशन ग्रीन हंट बंद करो।
-फर्जी केसों में जनता को गिरफ्तार करना बंद करो।

अध्यक्ष महासचिव
वरवरा राव 09676541715 राजकिशोर 09717583539

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