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शनिवार, 26 मई 2012

देशी कारपोरेट : विदेशी नियंत्रण


हाल के सालों में जबरन जमीन अधिग्रहण के प्रयास के खिलाफ देश भर में असंख्य संघर्ष फूट पड़े हैं। कलिंगनगर, पोस्को, काशीपुर, नियमगिरी, नंदीग्राम, सिंगुर, जैतापुर और यमुना एक्सप्रैस वे जैसे विख्यात संघर्ष तो जाने पहचाने हो गए हैं। जैसे ही ग्रामीणों ने जमीन के जबरन अधिग्रहण का प्रतिरोध करते हैं, उन्हें पुलिस, अधिकारियों तथा भाड़े के गुंडों का सामना करना पड़ता है। हर मामले में इन दमनकारी बलों के पीछे कारपोरेशन का हाथ होता है जोकि जमीन हथियाना चाहते हैं - जैसे टाटा स्टील, पोस्को, हिंडल्को, वेदांता, सलीम ग्रुप, टाटा मोटरस्, न्यूकलियर पावर कारपोरेशन ऑफ इंडिया, जेपी इंफ्राटेक आदि। और भूमंडलीकरण और वित्तियकरण (या वित्तिय भूमंडलीकरण) के वर्तमान युग में कारपोरेशन इसके प्रमोटरस् (जैसे टाटा, बिडला, अम्बानी आदि) के हितों का ही प्रतिनिध्ीत्व नहीं करता बल्कि विदेशी हितों का प्रतिनिधित्व भी करता है। ये हित कम दर्शनीय हैं और इन पर शायद ही टिप्पणी की जाती है, परन्तु ये उनके लिए कम महत्वपूर्ण नहीं होते हैं।
ये वित्तिय हित कई रूपों में देखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर कोरिया की कम्पनी पोस्को, जिसकी जमीन अधिग्रहण की कोशिशों के खिलाफ ओडिशा में तीव्र विरोध हो रहा है, में सबसे बड़ा शेयर धारक न्यू यॉर्क का बैंक है। इसके अलावा अमेरिका के अन्य निवेशको का भी इसमें काफी बड़ा हिस्सा है। हम कुछ अन्य उदाहरणों की बात करते हैं।
जैतापुर का परमाणु संयत्रा सार्वजनिक क्षेत्रा की कारपोरेशन न्यूकलियर पावर कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा बनाया जा रहा है। परन्तु इसके रियक्टर फ्रांस की कम्पनी एरेवा द्वारा दिए जाएंगें और वित्त भी फ्रांस ही देगा।
ओडिशा के नियमगिरी के डोंगरिया कोंध आदिवासियों से जमीन हथियाने की कोशिश वेदांता रिसोर्सिस कर रही है। वेदांता का उद्गम भारत में हुआ। परन्तु इसका मुख्यालय लंदन में है और यह लंदन स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है। इसके नियंत्रक हित वोल्कान इंवेशटमैंट के पास है जोकि अनिल अग्रवाल और उसके परिवार के सदस्यों के नियंत्राण वाली बहामा की निवेश कम्पनी है। बाकी का निवेश अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के पास हैं।
काशीपुर में अािदवासियों को जबरन उजाड़ने वाली औन उनका दमन करने वाली कम्पनी उत्कल एल्यूमिना आदित्य बिड़़ला घराने के नियंत्राण वाली हिंडल्कों और कनाड़ा की कम्पनी एल्कान का संयुक्त उद्यम है, जिसमें उनका शेयर क्रमशः 55 प्रतिशत और 45 प्रतिशत है। इसके आगे देखें तो बिड़ला के नियंत्रण वाली कम्पनी और ट्रस्टों में हिंडल्को का शेयर मात्रा 32 प्रतिशत है, जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास 31 प्रतिशत हिस्सा है (जिसमें मागन गारंटी ट्रस्ट ऑफ न्यूयॉर्क के पास इसका 9.3 प्रतिशत शेयर है) और अन्य 8.3 प्र्रतिशत भी विदेशियों के पास ग्लोबल डिपोसिटरी रिसिप्ट (जीडीआर) के रूप में है। दूसरे शब्दों में कहे तो हिंडल्कों में विदेशी हिस्सेदारी बिड़ला की हिस्सेदारी से अधिक है।
टाटा की कम्पनी और ट्रस्ट में टाटा मोटरस् का शेयर 34  प्रतिशत है। विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास इसका 23 प्रतिशत हिस्सा है। और विदेशों में अमेरिकन डिपोसिटरी शेयर और ग्लोबल डिपोस्टरी शेयर, जोकि क्रमशः न्यूयार्क और लक्समबर्ग स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, के रूप में जारी किए गए शेयरों के रूप में 19 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची गई है। इस प्रकार टाटा मोटरस् में विदेशी हिस्सेदारी 42 प्रतिशत से अधिक है यानि कि प्रमोटर की हिस्सेदारी से भी अधिक। टाटा मोटरस् ने काफी मात्रा में विदेशी कर्ज भी लिया हुआ है।
टाटा स्टील में विदशी संस्थागत निवेशकों का मालिकाना 17 प्रतिशत है और इसके अलावा 2.5 प्रतिशत पर ग्लोबल डिपॉस्टरी रिसिप्ट के रूप में विदेशी कब्जा है। परन्तु इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि टाटा स्टील बहुत अधिक विदेशी कर्ज लिया है, और इस कर्ज का बड़ा हिस्सा एंग्लो-डच स्टील कम्पनी कोरस को खरीदने के लिए लिया गया था। मार्च 2011 तक शुद्ध कर्जा 46,632 करोड रूपये था जिसमें से अधिकतर विदेशी मुद्रा का उधार है। इस बात पर गौर करना चाहिए कि टाटा स्टील के भारत के अन्दर मुनाफे में चलने वाले कारोबार से यह कर्ज उतारा जा रहा है।
इंटरनेट पर खोजने पर हमें ब्राईट इक्विटी लिमिटिड के बारे में कोई सूचना नहीं मिली। इसी कम्पनी के जरिए सलीम ग्रुप ने पश्चिम बंगाल में निवेश किया है। हालांकि इसका कोई महत्व नहीं है कि सलीम ग्रुप की होल्डिंग कम्पनी हांग कांग आधारित फर्स्ट पैसिफीक कम्पनी लिमिटिड है जिसके जरिए वह एशिया के भीतर टैलिकम्यूनिकेशन, आधारभूत ढ़ांचें, खाद्य उत्पादों और प्राकृतिक संसाधनों में किए गए निवेश को नियंत्रित करता है। फर्स्ट पैसिफिक के हिस्सेदारी का केवल 11.3 प्रतिशत ही एशिया में है, जबकि इसमें उत्तरी अमेरिका  और यूरोप की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत है।
इस तरह के अनेको उदाहरण हैं। जैसे कि मुम्बई एयरपोर्ट का निजीकरण होने के कारण जीवीके पावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटिड मुम्बई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटिड को संचालित करता है जिसमें उसका हिस्सा ज्यादा है। विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास जीवीके पावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटिड के 27 प्रतिशत शेयर हैं। इसके बदले में जीवीके ने 4 लाख लोगों (जोकि 40 सालों से एयरपोर्ट के इर्द गिर्द बसी झुग्गी बस्तियों में रह रहे हैं) के ‘पुर्नवास’ (विस्थापन पढ़ें) का काम रियल एस्टेट कम्पनी हाउसिंग डैवेलपमैंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटिड(एचडीआईएलं) को दिया है। यह अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक यह भारत की सबसे बढ़ी विस्थापन और पूर्नवास परियोजना है। (जीवेके के अपनी प्रकाशित योजना के अनुार यह झुग्गी बस्ती की यह 276 एकड़ जमीन शापिंग मॉल, होटल और अन्य व्यवसायिक रियल एस्टेट के विकास की आवश्यक है। जिसे एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के नाम पर लिया जा रहा है।)
एचडीआईएल पर रमेश वधवा का नियंत्राण है, जिसका नाम फॉर्ब्स करोड़पतियों की 2010 की सूची में शामिल था, और वह भारत के सबसे अमीर 50 लोगों में शामिल है। हालांकि बधवा, उसके परिवार और उसकी विभिन्न कम्पनियों का एचडीआईएल में हिस्सा मात्रा 38.6 प्रतिशत है, जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों का हिस्सा 42.5 प्रतिशत तक है। एचडीआईएल विदेशी संस्थाओं को नए शेयर बेचकर परियोजना के लिए धन की उगाही कर रही है (जिसे वे ‘क्वालिफाईड संस्थागत प्लेसमैंट का नाम दे रहे हैं)। एचडीआईएल की इस परियोजना से अनुमानित भारी आय की ओर निवेशक आकर्षित हो रहे हैं।
दिल्ली मुम्बई इंडस्टरियल कॉरिडॉर, जोकि शायद भारत की सबसे बड़ी आधारभूत परियोजना होगी या कहें कि जमीन की सबसे बड़ी लूट होगी, पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। दिल्ली मुम्बई कॉरीडॉर डेवलपमैंट कारपोरेश (डीएमआईसीडीसी) ने देश की वित्तिय राजधानी और राजनैतिक राजधानी के बीच में 1483 किलोमीटर लम्बा कॉरीडॉर बनाया जाएगा जोकि 5000-5500 वर्गीय किलोमीटर क्षेत्राफल में बनेगा। इस कॉरीडॉर के इर्द गिर्द 24 औद्योगिक शहर विकसित किए जाएंगे - जोकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रा, यूपी, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में बनाए जाएंगें। पहले दौर में 2018 तक 90 बिलियन डालर की लागत से पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप में 2000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रा में सात शहर विकसित करने की योजना है। इस प्रस्ताव में तीन बंदरगाह, छः हवाईअड्डे, एक तीव्र गति की माल वाहक लाईन, और एक छ लेन की बगैर कटाव का एक्सप्रैस वे बनान शामिल है। इसके लिए भारी मात्रा में जमीन की जरूरत हेागी -2000 वर्ग किलोमीटर 5 लाख एकड़ होता है जोकि दिल्ली के आकार का तीगुणा होगा। जूलाई,2011 में वित्त मंत्राी हर शहर को 2500 करोड़ देने के लिए सहमत गए यानि इन नए शहरों के लिए कुल मिलाकर सत्रह हजार पांच सौ करोड़ रूपया दिया जाएगा। इस परियोजना के लिए धन भारत सरकार के अलावा भारतीय कम्पनियों में जापानी निवेशक  डिपास्टरी रिसिप्ट के जरिए और जापानी कम्पनियों के सीधे निवेश के जरिए एकत्रा किया जाएगा। साथ ही जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी (जेइसीए) से कर्ज भी लिया जाएगा। जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी के मुताबिक ‘धन का 80 प्रतिशत हिस्सा जापानी कर्ज और सहायता से आएगा।’ इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जापानी कम्पनियों को इसका ठेका मिलेगा। दो शहरों के बीच तीव्र गति वाली रेल लाईन जापानी तकनीक से निर्मित की जाएगी और इसके लिए रेलवे को जापानी कर्ज मिलेगा। कई भारतीय और जापानी कम्पनियां संयुक्त उद्यम संधि, पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी हैं। एक अधिकारी के अनुसार ‘मितसुबिसी, हिताची, तोसिबा और जेवीसी इस परियोजना के लिए हाथ मिला चुकी हैं।’
पंजाब में पुलिस लाठी चार्ज में एक किसान की मौत होने का समाचार आया है। यह किसान मानसा जिले में प्रस्तावित 1,350 मैगावाट की क्षमता वाला ताप विद्युत कारखाना बनाने के लिए जबरन जमीन अधिग्रहण करने के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल था। निजी कम्पनी, पोयना पॉवर इस परियोजना को लगाएगी। यह कम्पनी इंडियाबुलस पॉवर की मातहत कम्पनी है। अनेको अनियमितताओं और अनिश्चितताओं के बावजूद राज्य सरकार बल प्रयोग करके जमीन अधिग्रहण पुरा करने पर उतारू है। विदेशी निवेशकों के पास इंडियाबुलस् पॉवर का 32.8 प्रतिशत हिस्सा है, इसके अलावा 58.8 प्रतिशत हिस्सा इंडियाबुलस् रियल एस्टेट लिमिटिड़ के पास है। इंडियाबुलस रियल एस्टेट लिमिटिड़ में विदेशी निवेशक का मालिकाना 51.6 प्रतिशत है। इस तरह इंडियाबुल पॉवर में विदेशी हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है।
ये कुछेक उदाहरण है। ये कई गुणा हो सकते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था कई तरीकों से विशालकाय निजी कारपोरेट क्षेत्र को जमीन और प्राकृतिक सम्पदा लूटवा रही है। हमें इस परिघटना के पति सचेत रहने और इसका अध्ययन करने की जरूरत है।
 (ऐस्पेक्ट आफ इंडियन इकनोमी से साभार)

1 टिप्पणी:

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