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मंगलवार, 29 मई 2012

नोनाडांगा के लोगों की एकजुटता और देबलीना और अभिजन की बेशर्त रिहाई का आह्वान


जन कार्यकर्ता देबलिना चक्रवर्ती और अभिजन सरकार की गिरफ्तारी और जेल में भेजना हम सब के लिए चिंता का विषय है। क्यों ममता बनर्जी की फासीवादी सरकार ने देबलिना चक्रवर्ती और अभिजन सरकार को विशेष निशाना बनाया? जादवपुर विश्वविद्यालय की छात्रा रही देबलीना और छात्र अभिजन हमेशा विस्थापन विरोधी आन्दोलनों के साथ साथ जनता की प्राकृतिक सम्पदा को सीपीएम नीत वाम सरकार और अब ममता बनर्जी नीत शासन द्वारा लूटे जाने के खिलाफ संघर्ष में आगे आकर लड़ते रहे हैं।
इस बार दोनो नोनाडांगा के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे छात्रों और बुद्धिजीवियों में सक्रिय रूप से शामिल थे। इन लोगों को 30 मार्च,2012 को राज्य बलों ने जबरन उजाड़ दिया था और उनके घरों को ढहा दिया था। नोनाडांगा में ज्यादातर वे लोग बसे हुए थे, जो सुन्दरबन में आए चक्रवात से उजड़ गए थे या जिन्हें ‘विकास’ नामक मानव निर्मित आपादा के कारण कोलकाता की कई झुग्गी बस्तियों से उजाड़ दिया गया था। नोनाडांगा की 80 एकड़ जमीन से सभी को उजाड़ कर इसे रियल एस्टेट के हवाले की सोच सीपीएम के जमाने में भी थी। ममता राज में घट रही घटनाएं उसी की निरन्तरता ही है, जो उसकी जनपक्षीय लफ्फाजी का पर्दाफाश करती हैं। विस्थापित करने के बाद राज्य बलों ने नोनाडोंगा के विस्थापितों और उनके समर्थकों पर बार बार हमला किया, जिसमें सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया और  4, 8, 9, 12 और 28 अप्रैल को लाठीचार्ज किया। जनता की चीख पुकार और प्रदर्शनों के बाद देबलीना और अभिजन के अलावा सभी को रिहा कर दिया गया। ये दोनों अभी भी जेल में हैं।
देबलीना और अभिजन छात्रों के अच्छे उदाहरण हैं जो समझ बुझ कर क्लास रूम की चार दिवारी से बाहर निकल गए और उत्पीड़ित जनता के रोजमर्रा की जिन्दगी की कठोर सच्चाईयों से जुड गए चाहे वो सिंगुर हो या नोनाडोंगा। जनता की सेवा करने की और जनता के संघर्ष से जुड़कर नया संसार रचने की इस तरह की राजनीतिक संस्कृति का राजनीतिक रूप से सामना करने में ममता बनर्जी अक्षम हैं और इसलिए उसनें कानून से खिलवाड़ करने वाली पुलिस और नौकरशाहों का प्रयोग कर इन नौजवानों पर झूठे केस लगवाकर उन्हें अपराधी घोषित करने के लिए अपनी सारा जोर लगा दिया।
देबलीना जादवपुर विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल रिलेशन डिपार्टमैंट की छात्रा थी। उसने जनवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए जनता का साथ देने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वह सिंगुर के जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी जिसने ममता के सत्ता में आने की जमीन तैयार की थी। जब नंदीग्राम की जनता ने खुंखार सलेम औद्योगिक समूह की सेज और रसायन कारखाना बनाने के खिलाफ आवाज बुलंद की तो वह वहां चली गई और वहां उसने जमीन व घरों से विस्थापन के खिलाफ बनी भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी द्वारा छेड़े गए शानदार जनसंघर्ष में भागीदारी की।  मैतिंगनी महिला समिति का निर्माण करने में उसकी महती भूमिका थी। एमएमएस महिलाओं का मंच था जो पितृसत्ता के खिलाफ, सेज और साम्राज्यवादी पूंजी के खिलाफ और सीपीएम हरमद के खिलाफ लड़ा था। यह लक्ष्मण सेठ- बिनोय कनोर- सुशान्तो घोष-तपन सुकुर- नाभा सामांता के गिरोह के रोजमर्रा के हमलों के खिलाफ जारी संघर्षों से जुड़ी रही।
सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी ने अपने गुस्से का रूख जनांदोलनों के खिलाफ कर दिया और मैतंगिनी महिला समिति को ‘शैतान बिग्रेड़’ का तमगा देकर उसे बदनाम करने का अभियान शुरू कर दिया। पुलिस ने हर बार की तरह देबलीना को माओवादी करार दिया जिसे मनमर्जी से हिरासत में लिया जा सकता है, यातनाएं दी जा सकती है, प्रताडित किया जा सकता है और बंदी बनाया जा सकता है।
यह शीशे की तरह साफ है कि गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने देबलिना को क्रूरतापूर्वक मानसिक और शारिरिक यातनाएं दी होंगी और उसे सालों साल बंदी बनाए रखने के लिए जेल भेजा होगा। क्या हमें पश्चिम बंगाल की इस क्रूर, निर्दयी और जनविरोधी मुख्यमंत्राी द्वारा किए जा रहे अन्याय को जारी रहने की अनुमति देनी चाहिए। देबलीना ने अनुचित बंदी का विरोध करने के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी है।
अभिजन सरकार इंजीनियर है और जादवपुर विश्वविद्यालय के मैटलैरजी डिपार्टमैंट में शोधकर्ता है। वह छात्रा संगठन आरएसएफ का सदस्य है और कई सालों से पश्चिम बंगाल के जनांदोलन में सक्रिय भागीदार है। वह कोलकाता से निकलने वाली पत्रिका ‘टूवर्डस ए न्यू डॉन’ का सम्पादक है, जो पुरे भारत में बाटा जाता है। अभिजन संहति समूह से भी जुड़ा हुआ है और उसने लालगढ़ में नारी इज्जत बचाओ कमेटी पर पुलिस दमन की रिपार्ट भी भेजी थी। 2010 को भी अभिजन को पश्चिम बंगाल सीआईड़ी ने उस समय हिरासत में ले लिया था जब वह दिल्ली में आईसीएसएसआर का साक्षात्कार देने जा रहा था। उस समय उससे गहन पुछताछ की गई थी कि नंदीग्राम जैसे जनांदोलनों में उसकी क्या भूमिका है। 2011 में उसे एक बार फिर खुंखार संयुक्त बलों द्वारा एक डाक्टर के साथ हिरासत में ले लिया जब वे लालगढ़ के दूर दराज के इलाके में मैडिकल कैम्प लगाने गए थे। परन्तु दोनों मामलों में पुलिस उस पर कोई केस दर्ज नहीं कर सकी और उसे छोड़ने पर मजबूर हो गई। इस बार उस पर हल्दिया का एक झूठा केस दर्ज किया गया है। दमनकारी देशद्रोह कानून और आर्म्स एक्ट उस पर चस्पा कर दिया गया है।
हम देश के सभी न्याय पसन्द और आजादी पसंद लोगों से अपील करते हैं कि देबलिना और अभिजन को झूठे केसो के आधार पर बंदी बनाए रखने के खिलाफ आवाज बुलंद करें तथा उनकी बेशर्त रिहाई की मांग करें। उनका एकमात्रा अपराध है कि वो नोनाडांगा की जनता के साथ खड़े रहे और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की। सचेतन विद्यार्थी होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम असहमति के अधिकार की रक्षा के लिए खड़े हो। देबलीना और अभिजन की बेशर्त रिहाई की मांग नोनाड़ांगा के लड़ाकू लोगों की इच्छाशक्ति को ओर मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। राज्य द्वारा देबलीना और अभिजन के इर्द गिर्द निर्मित किया गया ‘गैरकानूनी’ और ‘अवैध’ का धुंधलका वास्तव में उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की सरकारी नीति की खिलाफत कर रही उत्पीडित जनता से हाथ मिलाने के छात्रों के अधिकार का हनन है। हमें जनवादी आंदोलनों का मुंह बंद करने की फासीवादी नीतियों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। हम अन्य विश्वविद्यालयों के सभी छात्रों और बुद्धिजीवियों से अपील करते हैं कि नोनाडंगा की जनता के समर्थन में और देबलीना और अभिजन की बेशर्त रिहाई के के लिए हो रहे संघर्ष में शामिल हों। हम नोनाडांगा के विस्थापितों के संघर्ष के प्रति एकजुटता में उनके लिए राहत सामग्री एकत्र करें
-जादवपुर विश्वविद्यालय के जागरूक छात्रा और एल्यूमनी

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