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मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

चिलखारी कांड के समय जीतन मरांडी कर रहा था गरीब की जिंदगानी की सूटिंग

गरीबों की जिंदगानी एलबम झारखंड एभेन के सांस्कृतिककर्मीयों की प्रस्तुति है। इन गानों का फिल्मांकन जीतन मरांडी के निर्देशन में हुआ है। अप्रैल 2009 में जीतन मरांडी की गिरफ्तारी के समय इस एलबम के लोकार्पण की तैयारी चल रही थी। गिरफ्तारी के बाद जीतन मरांडी को चिलखारी कांड के झूठे केस में फंसा दिया गया। पुलिस, बाबुलाल मरांडी और प्रशासन ने मिलकर झूठी गवाहियां करवा कर निचली अदालत से उसे फांसी की सजा सुनवा दी। जबकि हकीकत यह है कि जिस दिन चिलखारी कांड हुआ उस समय जीतन मरांडी मधुबन में झारखंड एभेन के साथियों के साथ मिलकर इसी एलबम की सूटिंग कर रहा था। जीतन मरांडी ने इस एलबम के गानों में खुद भी भूमिका अदा की है। हमार राज देखकर, गाने में जीतन मरांडी ने पुलिस बना है। गाने में प्रतिरोध करने वाली जनता को पुलिस द्वारा उग्रवादी बनाकर दमन करने और जेल में ठूंस देने को दर्शाया गया है। जीतन मरांडी की खुद की जिंदगी भी इसी पुलिस के दमन का शिकार बन गई है और उस गाने को सही ठहरा रही है। यह एलबम झारखंड के आदिवासियों और मेहनतकश तबके के दुख दर्द को सांझा करती है तथा विस्थापन, पलायन, सरकारी कुव्यवस्था, गरीबी को बयान करती हुई प्रतिरोध के स्वर को बुलंद करती है।

जीतन मरांडी और झारखंड एभेन का परिचय

जीतन मरांडी का व्यक्तित्व और जीवन एक खुली किताब है। आज वे जेल में बंद हैं] पर उनकी आवाज आडियों, विडियो एलबम के माध्यम से देश के विभिन्न राज्यों में गुंज रही है। उनका सांस्कृतिक क्रियाकलाप झारखंड के जंगल-पहाड़ों और आकाश के नीचे कभी सिमट कर नहीं रहा। पूरा भारत उनका सांस्कृतिक मंच बनता गया। लगभग 15 वर्षों से विभिन्न राज्यों के बुद्धिजीवी] सांस्कृतिककर्मी] साहित्यकार] मानवाधिकार संगठन] प्रगतिशील एवं परिवर्तनकामी समुदाय उनके सार्वजनिक एवं सांस्कृतिक जीवन से परिचित हैं। वे झारखंड एभेन के नेतृत्वकारी संगठनकर्ता] बिहार क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ के सहयोगी] अखिल भारतीय क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ के कार्यसमिति के सदस्य] राजनीतिक बंदी रिहाई समिति के केन्द्रीय सचिव और क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा के केन्द्रीय समिति के सदस्य हैं।

जीतन मरांडी का जन्म झारखंड के एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ। माता-पिता के लाड़ प्यार के साथ बचपन का विकास स्कूली शिक्षा के साथ शुरू हुआ। परन्तु माता पिता की गरीबी और अभाव के कारण तीसरी कक्षा के बाद स्कूल की राह बंद हो गई। बाल जीवन खेत खलिहानों के उत्पादन संघर्ष से गुजरता हुआ मवेशियों के संग जंगल में विचरने लगा। स्कूल की तंग कोठरी और किताबों के पन्नों से बाहर यर्थाथ जीवन के ज्ञान प्राप्ती का विशाल क्षेत्रा सामने आ गया ।

भरपुर पेड़ों से आच्छादित उबड़-खाबड़ जंगल-पहाड़-पहाड़ों में बसे गांव, गांवों में रहने वाले लोग] उनके जीवन निर्वाह की कठिनाईयां] जंगल आधारित जीवन की व्यथा] आत्मरक्षार्थ संघर्ष कीन नीत नई चुनौतियां जीतन मरांडी के ज्ञान प्राप्ति और अनुभव का केन्द्र बनी। वनवासियों के रहन सहन] भाषा बोली] सहयोगी प्रवृति] सामूहिक श्रम] संघर्षशील सभ्यता] और संस्कृति ने जनसंस्कृति की जागृति और विकास को मूर्त रूप दिया। जीवन की समस्याएं और जनजीवन की व्यथा गुनगुनाहट बनी। चिरपरिचित लोकधुन] जंगल में विचरते मवेशियों के गले की घंटियों की सामूहिक आवाज और बजते घुंघरूओं की लय पर जीवन का दुख-दर्द उनके गीतों का बोल बन गया। जंगल के अधिकार से वंचित जंगलवासियों का जीवन संघर्ष] आक्रोश और शोषण उत्पीड़न से मुक्ति की छटपटाहट उनकी गीतों की विषयवस्तु बन गया। उनके गीत पीड़ित हृदय को मथने वाली जन-जागृति का आह्वान बनता गया।

जीतन मरांडी क्रमशः व्यक्तिगत जीवन की परिधी को लांघकर सार्वजनिक जीवन का अंग बन गए। घरेलू कार्यों से निपटने के साथ साथ सामाजिक जीवन से लगाव बढ़ गया। आम जीवन की समस्याओं और संघर्षों से एकाकार होकर राजकीय शोषण और जंगल-अधिकारियों की ठगी और धौंस का पर्दाफास उनका सांस्कृतिक स्वर बन गया। उनके गीत और गीत के साथ शोषण दमन का कला प्रदर्शन और उससे मुक्ति का अभिनय शोषण-दमन के खिलाफ प्रतिरोध की चेतना के साथ नए समाज निर्माण का मार्गदर्शक बनता गया। बच्चे और युवा उनके गीतों और कला प्रदर्शन से आकर्षित होकर उनके इर्दगिर्द जुटते गए। उनकी संास्कृतिक टोलियां बनी और वे झारखंड की सांस्कृतिक संस्था झारखंड एभेन के सबल और सक्रिय अंग बन गए।

उनकी सांस्कृतिक गतिविधियां विकसित होती गई। उन्होंने पूरी शोषित उत्पीड़ित जनता और किसान मजदूरों के हक अधिकार तथा मर्यादापूर्ण जीवन के लिए परिवर्तन की आवश्यकता को अपने संगीत का आधार बनाया। जब झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था तभी झारखंड एभेन बिहार क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ से सम्बद्ध हो गया था और क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ] बिहार अखिल भारतीय क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ की घटक ईकाई था। स्वाभाविक रूप से जीतन मरांडी अखिल भारतीय क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ का अंग बन गए। वे खुले रूप से देश के कोने-कोने में अखिल भारतीय क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ के सम्मेलनों] सेमिनारों] कार्यशालाओं और सांस्कृतिक अभियानों में अपनी सक्रिय भागेदारी निभाते रहे हैं। बल्कि जहां गए वहां कि भाषा और धुनों पर आधारित गीतों को आत्मसात करते गए। संथाली] खोरठा] नागपुरी] हिन्दी में अनगिनत लोकगीतों की रचना के अलावे बांग्ला] तेलगू और अन्य कई भाषाओं के क्रांतिकारी गीत उन्हें कंठस्थ होते गए। केवल वे स्वयं ही नहीं] बल्कि उनकी बाल मंडली कई भाषाओं में आवाज बुलंद करती है।

अखिल भारतीय क्रांतिकारी सांस्कृतिक संघ से जुड़ने के पश्चात जीतन मरांडी की क्रांतिकारी प्रतिबद्धता का बेहद विकास हुआ। वे देश में चल रहे सामंतवाद विरोधी] साम्राज्यवाद विरोधी नवजनवादी सांस्कृतिक धारा से पूर्ण अवगत हो गए। परिणामस्वरूप जीतन मरांडी अब केवल कोई तटस्थ जनसंस्कृति के गायक] कलाकार और रचनाकार तक सीमित नहीं रहे। उनकी चेतना एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट क्रांतिकारी सांस्कृतिक कलाकार के रूप में स्थापित हो गई।

लोकतंत्रा का मुखौटाधारी वर्गीय सत्ता के आसन पर बैठे लोगों के झूठ और फरेब का पर्दाफाश करना] कानून की पोथी पढ़कर इंसाफ की तराजू पर डंडी मारने वालों की पोल की ढ़ोल खोलना और शोषण उत्पीड़न से मुक्ति के सही मार्ग को उजागर करना उनके गीतों एवं लेखनी का अंग बन गया।

ज्ञातव्य है कि जीतन मरांडी का गांव नक्सल प्रभावित क्षेत्रा में गिना जाता है। इसलिए जनता के जीवन और सत्ता के शोषण-दमन की सच्चाई का गीत गाने और प्रचार करने के कारण शासक वर्ग एवं प्रशासन के कोप का भाजन बनना जीतन मरांडी के लिए स्वाभाविक था। क्योंकि इतिहास गवाह है] सत्य बोलने के कारण ही वैज्ञानिक गैलिलियों को शासक वर्ग की यातना झेलनी पड़ी थी। नक्सलवादी प्रचारक होने के आरोप में जीतन मरांडी को भी जेल जाना पड़ा है। परन्तु उससे उनकी सांस्कृतिक प्रतिबद्धता में लेश मात्रा भ्ज्ञी कमी नहीं आई है। बल्कि जेल जीवन में जनता पर होने वाले शोषण-जुल्म और न्याय की आड़ में होने वाले दमन का नंगा स्वरूप उनके सामने आया। इससे उनकी प्रतिरोध की चेतना का सबल विकास हो गया और वे भूख के विरूद्ध भात के लिए] रात के विरूद्ध प्रातः के लिए एवं नए राज-समाज के लिए संघर्ष की चेतना का अलख जगाते रहे।


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