जानिए! सच, संदेह, संदिग्ध और अदालत की कार्यवाही!
जरा सच की ओर चले और जानें चिलखारी कांड एवं चश्मदीद गवाहों की गवाही और कांड के उन दस अभियुक्तों की सच क्या है? मैं जीतन मरांडी! मेरा कोई उप नाम नहीं है। मतदाता पहचान पत्रा एवं राशन कार्ड में भी यही नाम अंकित है। ‘झारखंड एभेन’ द्वारा प्रस्तुत गीत कैसेटों में भी यही नाम सम्पर्क पता के साथ प्रकाशित किया गया है। स्व. बुधन मरांडी का पुत्रा हूँ। गाँव करन्दों थाना, जिला-स्थान-पीरटांड़ मेरा जन्म स्थान है। मैं गरीब किसान परिवार से आता हूँ। मेरे ऊपर गिरिडीह पुलिस ने कई नक्सली कांडों का जघन्य आरोप लगा चूकी है। जिसमें चिलखारी कांड मुख्य रूप से शामिल है। इसके अलावा और 6 मुकदमें हैं। इन सभी कांडों में मैं बिल्कूल निर्दोष हूँ। बहुचर्चित चिलखारी कांड किसी से छिपा हुआ नहीं है। फिर भी बता दूँ कि देवरी थाना के चिलखारी गांव के फूटबाल मैदान में 26 अक्टुबर 07 को एक समिति द्वारा संथाली आरकेस्ट्रा कार्यक्रम आयोजित की गईया था। जिसमें ढेर सारे आदिवासी लोग मौजूद थे। जिसका उद्घाटन नुनूलाल मरांडी ने किया। संथाली आरकेस्ट्रा कार्यक्रम का सिलसिला जारी थी। इसी बीच रात्रि करीब 12.30 बजे के आसपास नक्सलियों ने नुनूलाल मरांडी को मारने के ख्याल से हमला बोल दिया। (जिसका माओवादियों की घटना के बाद ही बयान आयी थी) पर नुनूलाल मरांडी को कुछ नहीं हुआ। लेकिन नक्सलियों की गोलीबारी में 18 लोग मारे गए। बाद में पीएमसीएच धनबाद में एक घायल महिला की मौत हुई। जिसमें मृत्यु की संख्या 19 हो गई थी और नुनूलाल मरांडी के अंगरक्षक पुरन किस्कू सहित नौ लोग घायल हो गए। देवरी पुलिस द्वारा वरीय पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर कांड की अनुसंधान घायल पुरन किस्कू, नुनूलाल मरांडी के अंगरक्षक से 27 अक्टुबर 07 के भोर 3.30 बजे के आसपास घघटना स्थल में ही बयान से शुरू होती है। वह कांड का सूचक बन जाता है। उनके बयान के अनुसार देवरी थाना में 167/07 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गईई। रमेश मंडल, चिरागजी, विशुन रजवार, कोल्हा यादव, जीतन, सुनील और अल्बर्ट इत्यादि को प्राथमिकी में नामजद अभियुक्त बनाया गया। इसके अलावा 35-40 अज्ञात नक्सलियों को भी अभियुक्त बनाया गया। किसी का भी पूरा पता अंकित नहीं है। आखिर पुरन किस्कू जाना कैसे इतने लोगों का नाम? यह बयान कम संदेहास्पद नहीं है। बाकी किसी भी लोगों से उस वक्त पुलिस ने बयान नहीं ली। इसका मतलब वहां पर कोई भी व्यक्ति नहीं होगा। आठ घायलों से भी वहाँ पर बयान नहीं लिया गया। पता नहीं वहाँ पर घायल लोग थे की नहीं कहना मुश्किल है। अगर वहां पर मौजूद होते तो बयान लिया गया होता। जबकि सच्चाई यह है कि सभी घघायलों के बयान सदर अस्पताल, गिरिडीह में लिये गये थे। यह मेरा चिलखारी कांड की सच्चाई को सामने लाने हेतु एक तर्क है।
29 अक्टूबर को पुलिस के अनुसंधान के क्रम में एक और संदिग्ध बयान होता है। 164 धारा के तहत न्यायिक मजिस्टेट श्री एस. के. सिंह अदालत, गिरिडीह में खूद को चश्मदीद गवाह कहने वाले रामचन्द्र ठाकुर (तीसरी), उदय साव (गावां), दिनेश ठाकुर (तीसरी), मोती साव (गावां), इन्द्रदेव राय (गावां), देवन मरांडी (गाँवा) को पुलिस ने लाकर बयान दिलवाया। इन लोगों ने भी वही नामों को दोहराया। साथ में मनोज रजवार, अनिल राम, छत्रापति मंडल आदि को जोड़ दिया गया। हो रहा था संथाली आरकेस्ट्रा का कार्यक्रम! लेकिन देवन मरांडी को छोड़कर कोई भी संथाली आदिवासी चश्मदीद गवाह बना नहीं। एक भी स्थानीय एवं आयोजन समिति के गवाह नहीं हैं! टेंट हाउस, साउंड बाक्स वाले एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करने वाले कलाकारों का एक भी गवाह पुलिस की अनुसंधाान में नहीं आये! न बयान लिया गया है! क्या यह संदिग्ध मामला नहीं है? आगे और बताऊंगा! इन सभी गवाहों की बयान के बाद आप सभी प्रभात खबर की सुर्खी तस्वीर के साथ पढ़े होंगे! ‘हमलावर नक्सली जीतन मरांडी पहचाना गया।’ वह तस्वीर मेरा ही था! इसके बाद मैंने अपनी प्रतिक्रिया दिया। प्रभात खबर ने खेद प्रकट करते हुए बड़ी भूल के रूप में स्वीकारी थी! पुलिस प्रशासन के उच्च पदाधिकारियों ने कहा कि यह दूसरे जीतन मरांडी की तस्वीर है। स्पष्ट रूप से यह खंडन 31 अक्टुबर 2007 को ही अखबारों में आ चूका है। इस बीच पुलिस ने कांड के संदेह में दो दिनों के बाद ही अपने-अपने निवास स्थानों से मूंग किस्कू (पीरटांड़), टुपलाल यादव (सरिया), रामसहाय दास (देवरी), हाफिज रहमत अंसारी (देवरी), अनिल राम (गोबिन्दपुर-नवादा) को पकड़कर जेल भेज दिया। घटना से सभी अनजान हैं। इन लोगों से मेरी मुलाकाती जेल में हुई और जाना इन लोगों की निर्दोषता! इनलोगों की पुलिस डायरी चार्ज सीट जनवरी 08 में सब्मीट हुई। डायरी में गवाह उदय साव के अनुसार सुबोध साव और प्रहलाद सिंह (दोनों गावां) भी कार्यक्रम देख रहे थे। जबकि 167 के तहत दिया गया बयान में ऐसा नहीं था। इन दोनों के बयान के आधार पर कांड के अप्राथमिकी अभियुक्तों के रूप में मंगू किस्कू, टुपलाल यादव, रामसहाय दास, हाफीज रहमत और किशुन रजवार को जोड़ दिया गया।
जरा देखे फर्जी गवाही बनाने का प्रक्रिया! पुलिस की अनुसंधान जारी रहती है। अनुसंधान के क्रम में फरवरी 08 को मोतीराय (गावां) पतिराय (गावां) और सुखदेव मरांडी (तिसरी) से अनुसंधानकर्ता सुमन आनन ने बयान लिया। इन दोनों के बयान के आधार पर जीतन मरांडी यानि मैं और सीताराम तुरी (सोनोजमुई) का कांड में नाम जोड़ दिया गया। अभियुक्तों के साथ गवाहों को भी पुलिस बनाती गईई। इन गवाहों की बयानों का हवाला देते हुए बताया गया है कि कार्यक्रम में मौजूद थे और दोनों जीतन मरांडी को पहचानते हैं। एक करंदो के और दूसरा जीतन मरांडी टेसाफुली (मिमियाघाट) के। दोनों घघटना में शामिल था! यहाँ दो जीतन मरांडी सामने आया। यानि मैं और दूसरा कोईई और जीतन मरांडी! क्या यह बयान संदिग्ध नहीं है? इसी बीच 5 अप्रैल 08 को रांची से मेरी गिरफ्तारी हो जाती है। कोतवली थाना कांड सं. 696/07 के तहत 6 अप्रैल 08 को राँची जेल भेज दिया। आरोप था रोड जाम और भड़काऊ भाषण देने का। 12 अप्रैल, 08 को चिलखारी कांड यानी देवरी थाना कांड सं. 167/07 में गिरिडीह पुलिस रिमांड की। तब से आज तक जेल में हूँ। 17 अप्रैल 08 को उसी कांड में दस दिनों का पुलिस रिमांड में ले गई। पुछताछ के क्रम में मुझसे पुलिस को कोई सबुत नहीं मिली। क्योंकि मैं कुछ नहीं जानता। एक महीने के बाद सीताराम तुरी को भी पुलिस पकड़ कर जेल ले आती है। जिससे कुल मिलाकर अभियुक्तों की संख्या दस हो गईई। दूसरा पर की डायरी चार्जसीट जुलाई 2008 में सब्मीट किया गया। और पहला पर का डायरी चार्जसीट एवं खठ में अंकित धारा के तहत 1 जुलाई 2008 को और दूसरा पर का चार्जसीट के अनुसार 19 नवम्बर 2008 को केस चार्ज पर लगा। माननीय अदालत ने दोनों पर के डायरी चार्जसीट को मिला दिया और मुकदमा की प्रक्रिया एक साथ बढ़ने लगी।
बताना उचित होगा कि कोई और जीतन मरांडी के नाम पर दर्ज मुकदमां पुलिस ने मेरे उ$पर डाल दिया है। चिलखारी कांड के अलावा 18.6.08 को गावां थाना कांड संख्या - 56/99 और 54/2000 13 जनवरी 09 को पीरटांड़ थाना कांड संख्या- 42/03 और 9/04 मे रिमांड किया। पुलिस की तमाम केस डायरी बिल्कूल गोलमटोल ढंग से अदालत में पेश की है। जो बड़ी साजिश है। मैं चिलखारी कांड में जमानत के लिए उच्च न्यायालय गया। जिसका 16 अगस्त 08 को मेरी अर्जी को खारिज करते हुए निचली अदालत को मुकदमा निष्पादन हेतु आठ महीने का अवधि दिया। आज तक कई घटनाक्रम से हमें गुजरना पड़ा है।
जरा जानें क्या है घटनाक्रम की सच! 24 मार्च 09 को अदालत में हम लोग पेशी के लिए आये हुए थे। सेसन हाजत में तत्कालीन टाउन थाना प्रभारी उपेन्द्र कुमार सिंह आये। और सेसन हाजत प्रभारी गोपाल पांडेय के सहयोग से मुझे सामने बुलाकर कुछ बातचीत की। कुछ देर के बाद बाकी मियादी (केस पार्टनर) को छोड़कर केवल पेशी के लिए मुझको निकाला। गेट के बाहर कांड के फर्जी गवाहों के साथ उपेन्द्र सिंह भी खड़ा था। सभी गवाहों को इशारा करते हुए कहा- यही है जीतन मरांडी पहचानों! वे सभी लोग मेरे पीछे-पीछे अदालत तक गए और मुझको गौर से देखा। इस तरह गवाहों के बीच मेरा पहचान कराया गया। जिसका मैंने एतराज भी जताया था। उस दिन गवाहों की गवाही नहीं हुई। पुनः एक अप्रैल को तारीख रखा गया। उस दिन गवाह मोती साव और सुबोध साव की गवाही हुई। मोती साव ने मुझको पहचानते हुए कहा यही जीतन मरांडी घटना में शामिल था। जो गोली चला रहा था। उस दिन भी अदालत में उपस्थित थे टाउन थाना प्रभारी उपेन्द्र सिंह। फिर अप्रैल 09 से मेरा स्पेशल कोर्ट में पेशी शुरू कर दी। जेल से अकेला लाना और अदालत में पेशी करना पुलिस की बड़ी साजिश थी। सभी 30 गवाही पूरी होने के बाद हमारी पेशी सामान्य हो गई। कुल 30 गवाहों की गवाही हुई है। जिसमें कांड के सूचक एक, डाक्टर सात, अनुसंधानकर्ता दो, 164 का बयान देने वाले 6 ‘चश्मदीद’ गवाह, आठ घायलों की गवाही, पांच और चश्मदीद गवाहों की गवाही हुई है। इनमें से 164 के बयान देने वाले गवाहों ने मनोज रजवार, अनिल राम, छत्रापति मंडल के विरूद्ध भी अपनी गवाही दी है। बाकी गवाहों ने पहचान करने से इन्कार कर दिया। जिन मोती राय, पतिराय एवं सुखदेव मरांडी की बयान पर मुझे इस कांड में जोड़ा गया था उन लोगों ने अदालत में पुलिस के सामने बयान कभी दिया ही नहीं। मेरे विरूद्ध बयान देने वाले गवाहों ने घर, थाना एवं पिता का नाम नहीं बताया। तब सवाल उठता है कि मेरा सारा विवरण आखिर कौन बताया? अनुसंधानकर्ता ने तो गवाहों की बयान के आधार पर सारा तथ्यों को लिखा है ऐसा बताया गया। ऐसे में पुलिस की अनुसंधान ही संदिग्ध साबित होता है।
अब मैं इन गवाहों की ओर इशारा करना चाहता हूँ। इनका पिछला इतिहास क्या है? और वे किस हद से चश्मदीद गवाह है? जरा गौर किया जाए! रामचन्द्र ठाकुर, उदय साव, मोती साव कई नक्सली कांडों के नामजाद अभियुक्त हैं। साथ ही अनेक नक्सली कांडों एवं अपराधी वारदात में चश्मदीद गवाह बने हुए हैं। वह भी देवरी और तिसरी थाना अन्तर्गत घटीत घटनाओं में। यह मैं नहीं बल्कि खूद पुलिस अधीक्षक गिरिडीह ने सूचना का अधिकार कानून 2005 के तहत मांगे गए सूचना में दिए हैं। जिन कांडों के वे अभियुक्त है उनमें अदालत से फरारी वारंट तक हो चूकी है। इसके बाद भी उन्हें पुलिस की संरक्षण मिली हुआ है। ये तमाम सबुत अदालत में मौजूद है। यही तो है चिलखारी कांड की गवाहों का इतिहास और राजनेताओं, पुसिल प्रशासन की जघन्य साजिश। एक अपराधी को चश्मदीद गवाह बनाया गया है! यह सिर्फ इसलिए ताकि मुझे सजा मिल सके।
चिलखारी कांड के असली चश्मदीद गवाह के रूप में मैं पुरन किस्कू और सभी घायलों को मानता हूँ। क्योंकि उस कार्यक्रम में शामिल होने का प्रमाण नक्सलियों की गोली से घघायल होना है। जबकि बाकी गवाह कार्यक्रम का कोईई प्रमाण तक नहीं पेश कर पाए हैं। इससे प्रमाणित होता है कि गहरी साजिश के तहत गवाहों को बनाया गया है। यही है चिलखारी कांड की सच, संदेह और संदिग्ध मामला। अब देखना यह है कि सच्चाई की जीत होती है या झूठ की। बस अंत में आपसे अपील है कि न्याय के लिए आगे आवें और साथ दें क्योंकि सजा का हकदार मैं नहीं हूँ। मैं एक निर्दोष हूँ! संस्कृतिकर्मी एवं सामाजिक कार्यकर्ता हूँ।
जीतन मरांडी
दिनांक 1/3/2011
मंडल कारा, गिरिडीह
ज्ञापक 393 गिरिडीह दिनांक 2.3.11
प्रतिलिपि संपादक दैनिक जागरण कार्यालय पंचशील धैया धनवाद को बंदी जीतन मरांडी के द्वारा दिये गये आवेदन पत्रा का अग्रसार ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें