आओ आवाज बुलंद करें।
कवि और जनकलाकार जीतन मरांडी और उसके साथी अनिल राम, मनोज राजवार और छत्रपति मंडल की फांसी की सजा के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए जनवादी लोगों से अपील
उत्पीड़ित लोगों के भलाई की सोच रखने वाले कवियों और कलाकारों का फांसी देना असामान्य घटना है। दक्षिण अफ्रिका के बेंजामिन मोलेस और नाईजीरिया के केन सारो विवा ऐसे बिरले उदाहरण ही हैं। उन्हें जनता के लिए गाने के कारण फांसी नहीं दी गई बल्कि गरीबों और शोषितों के लिए गाने के कारण फांसी दी गई। सामंती और पूंजीवादी देशों में अन्यायी शासन का विरोध करने वाले लोगों को फांसी देना आम बात है और राजनैतिक कारणों और तोडे़-मरोड़े गए सबूतों के आधार पर फांसी की कार्रवाई को उचित ठहराया जाता है। इतिहास गवाह है कि ऐसे मामलों में फांसी झूठे आरोप लगाकर, जानबुझ कर फंसा कर और गढ़े गए सबुतों के आधार पर दी जाती है।
हम राजनीतिक विरोधियों को दी गई अनुचित फांसी के गवाह हैं। परन्तु झारखंड राज्य के एक सत्र न्यायालय ने सुप्रसिद्ध कलाकार और जनता के दुलारे कलाकार जीतन मरांडी और उनके तीन साथियों को फांसी की सजा सुनाकर पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी के बेटे अनुप मरांडी और अन्य लोगों की हत्या के केस में गिरफ्तार किए जाने से पहले जीतन मरांडी केवल जनता की बीच में गाता था। इस घटना की जिम्मेवारी माओवादियों ने ली थी। जीतन मरांडी माओवादी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं है। पुलिस ने कुछ जाने-माने माओवादियों को आरोपी बनाया। उस व्यक्ति का नाम भी जीतन मरांडी था। इससे कलाकार जीतन मरांडी को झूठे केस में फंसाना पुलिस के लिए आसान हो गया क्योंकि वे माओवादी पार्टी के दूसरे जीतन मरांडी को नहीं पकड़ सके हैं।
5 अप्रैल, 2008 को जिस समय जीतन मरांडी को गिरफ्तार किया गया उस समय वह विस्थापन विरोधी जनविकास आन्दोलन की बैठक से लौट रहा था। यह संगठन हजारों गरीब लोगों को विस्थापित करने और उन्हें आजीविका के साधनों से वंचित करने वाले गैर-कानूनी खनन, निजी कम्पनियों द्वारा जमीन हड़पने और स्टील प्लांट की स्थापना के खिलाफ आन्दोलन का नेतृत्व करता है। उसकी गिरफ्तारी के समय पुलिस ने घोषणा की कि उसकी गिरफ्तारी मुख्यमंत्री आवास के सामने जनप्रदर्शन करके रोकथाम के आदेशों का उल्लंघन करने के आरोप में की गई है, जोकि सम्भवतः अनुचित गिरफ्तारियों के खिलाफ जनता के गुस्से को शान्त करने के लिए की गई थी।
परन्तु पुलिस जीतन मरांडी को छोडना नहीं चाहती थी। उन्हें जीतन मरांडी मे एक ज्वालामुखी नजर आया जो जनउभार को गति दे सकता था और उसे झंझावत में बदल सकता था। उनपर कथित हत्या के मामले में झुठा मुकद्मा दर्ज किया गया, झुठे सबुत जुटाए गए, और इस अपराध में फांसी की सजा सुनिश्चित करवा दी, जिसके बारे में पुलिस जानती है कि जीतन की इस कांड में कोई भूमिका नहीं है।
अब फांसी की सजा उच्च न्यायालय में पुष्टि के लिए लम्बित है। उच्च न्यायालय ट्रायल कोर्ट में दर्ज किए गए झूठे सबूतों के आधार पर निर्णय सुनाएगा। हमें फैसले का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है। समय आ गया है कि सभी उदार और जनवादी लोग फांसी की सजा के खिलाफ ही आवाज बुलंद करें। हमारी सरकार को शर्म आनी चाहिए जिसे अपने अन्यायपुर्ण और गैर जनवादी शासन का विरोध करने वालो को खत्म करने के लिए फांसी की सजा की जरूरत है जबकि सौ से अधिक देशों ने फांसी की सजा खत्म कर दी है। जीतन मरांडी और उसके साथियों को मौत की सजा देश की जनता के खिलाफ है। हमें भारतीय दंड सहिंता से मौत की सजा खत्म करने के लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए। यदि आज हम चुप रहे तो आने वाले दिनों में कई ओर जनकलाकारों को झूठे आरोपों में फांसी दी जा सकती है। आओ हम मूक दर्शक न बने रहें और उन कलाकारों की याद में दीप जलाएं जो जनता के लिए गाते और लिखते हैं और फांसी के तख्ते पर भी गाते रहते हैं।
हस्ताक्षरकर्ता
अरूंधति राय, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता, बुकर पुरष्कार विजेता, दिल्ली
कविता श्रीवास्तव, पीयुसीएल, राजस्थान
गदर, जनगायक, हैदराबाद
प्रोफेसर जी. हरगोपाल, पूर्व एपीसीएलसी अध्यक्ष, हैदराबाद
बर्नाड डी मैलो, सहायक सम्पादक, इपीडब्लू,, सीपीडीआर, मुम्बई
बोझा तारक्कम, वरिष्ट अधिवक्ता, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय, हैदराबाद
एम टी खान, पूर्व अध्यक्ष एपीसीएलसी, हैदराबाद
रत्नमाला, क्रान्तिकारी लेखक संघ विरसम, हैदराबाद
प्रोफेसर घंटा चक्रपाणि, बी.आर. अम्बेडकर ओपन विश्वविद्यालय, हैदराबाद
झुलुरी गावरी शंकर, लेखक, तेलंगाना रचियता वेदिका, हैदराबाद
कोंडाविति सत्यावति, सम्पादक, भूमिका, हैदराबाद
भूपाल, लेखक, सिने कलाकार, साहित्य अकादमी से पुरस्कार विजेता, हैदराबाद
वरवरा राव, विरसम, हैदराबाद
के शिवारेड्डी, कवि, केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हैदराबाद
आर नारायण मुर्ति, तेलगू फिल्मों में कलाकार, निदेशक, निर्माता, हैदराबाद
चप्पु कातयायनी, विरसम, हैदराबाद
डा. समता रोशिनी पादला, हैदराबाद
प्रो. ए विनय बाबू, जेएनटीयू, हैदराबाद
दप्पु रमेश, सांस्कृतिक कर्मी,
देशपति श्रीनिवास, मंजीरा रचियता संघम
विमला, अरूणोदय, हैदराबाद
याकुब, विख्यात लेखक
न्ंदिनी सिद्धारेड्डी, मंजिरा रचियता संघम
लक्ष्मण अल्ले, विख्यात कलाकार और पेंटर, हैदराबाद
कोटेश्वर राव, सचिव, प्रजाकला मंडली
जोन, अध्यक्ष, प्रजाकला मंडली
चेक्कुरी रामाराव, प्रसिद्ध लेखक
ककराला, फिल्म अभिनेता, हैदराबाद
जी. हनुमंता राव, एपी एम्पलोई कोरडिनेशन कमेटी हैदराबाद
बी एस रामुलु, प्रसिद्ध लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता
प्रो. एस वी सत्यानारायण, ओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
सवाति, वी, रिपोर्टर, द हिन्दू
वासीरेड्डी नारायण, सम्पादक, कथासाहिति, हैदराबाद
नलेशवरम शंकरम, कवि, हैदराबाद
रामकी, विरसम
जी मनोहर, अधिवक्ता, एपी उच्च न्यायालय, हैदराबाद
प्रो. एल कोमारिहा, हैदराबाद
गितांजली, विरसम, हैदराबाद
व अन्य.....
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