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गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

लड़ाई जारी है....

3 साल 8 माह 3 दिन पहले जीतन मरांडी पर दर्ज किए गए चिलखारी केस में झारखंड उच्च न्यायालय उसे निर्दोष करार देते हुए फांसी की सजा रद्ध कर दी। इस केस के जरिए प्रशासन और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ ने 3 साल 8 माह तक जीतन मरांडी के गले के स्वर को शोषितों-उत्पीड़ितों के पक्ष में उठने से रोके रखा। जीतन को फांसी के तख्ते पर चढ़ाकर उसकी आवाज को हमेशा के लिए खामोश करने की जुल्मी सरकार की कोशिश तो नाकाम हो गई। जनता के संघर्ष के बदौलत आज जीतन मरांडी को फांसी की दहलीज से वापिस खींच लिया गया। परन्तु सब जानते हैं कि जीतन मरांडी की आवाज को खामोश करने के लिए सरकार ने उसपर अनेकों फर्जी केस लादे थे। झारखंड सरकार के जुल्मों-सितम का शिकार बना जीतन मरांडी अभी भी जेल में रहने के लिए मजबूर है। जीतन मरांडी को फांसी के पंजे से मुक्त कराने पर संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। जीतन मरांडी पर देशद्रोह जैसे केस अभी तक भी जारी हैं और जीतन मरांडी जैसे ही हजारों कार्यकर्ताओं को भी जेलों की सलाखों में कैद कर समाज बदलाव के सपनों को सच्चाई में बदलने से रोकने की कोशिश की जा रही है। राजद्रोह, यूएपीए, पोटा, सीएलए, टाड़ा जैसे कानूनों के जरिए उनकी आकांक्षाओं को कुचला जा रहा है।

जीतन मरांडी के उपर दर्ज किए गए सभी मुकदमें वापिस लिए जाएं तथा उन्हें तत्काल बरी किया जाए।
जीतन मरांडी को फर्जी केसों में फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों और राजनीतिज्ञों को सजा दी जाए।
तमाम राजनैतिक बंदियों को तुरन्त बगैर शर्त रिहा किया जाए।
भारत के कानूनों से फांसी की सजा का प्रावधान खत्म किया जाए।
यूएपीए, राजद्रोह जैसे दमनकारी कानून और कानूनी प्रावधान तुरन्त निरस्त किए जाएं।

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