विषय वस्तु

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012


हमारी अर्थी शाही हो नहीं सकती

हमारे सपनों में रहा है

एक जोड़ी बैल से हल जोतते हुए

खेतों के सम्मान को बनाए रखना

हमारे सपनों में रहा है

कोइल नदी के किनारे एक घर

जहाँ हमसे ज्यादा हमारे सपने हों

हमारे सपनों में रहा है

कारो नदी की एक छुअन

जो हमारे आलिंगनबद्ध बाजुओं को और गाढ़ा करे

हमारे सपनों में रहा है

मान्दर और नगाड़ों की ताल में उन्मत्त बियाह

हमने कभी सल्तनत की कामना नहीं की

हमने नहीं चाहा कि हमारा राज्याभिषेक हो

हमारे शाही होने की कामना में रहा है

अंजुरी भर सपनों का सच होना

दम तोड़ते वक्त बाहों की अटूट जकड़न

और रक्तिम होंठों की अंतिम प्रगाढ़ मुहर.

हमने चाहा कि

पंडुकों की नींद गिलहरियों की धमाचैकड़ी से टूट भी जाए

तो उनके सपने टूटें

हमने चाहा कि

फसलों की नस्ल बची रहे

खेतों के आसमान के साथ

हमने चाहा कि जंगल बचा रहे

अपने कुल-गोत्र के साथ

पृथ्वी को हम पृथ्वी की तरह ही देखें

पेड़ की जगह पेड़ ही देखें

नदी की जगह नदी

समुद्र की जगह समुद्र और

पहाड़ की जगह पहाड़

हमारी चाह और उसके होने के बीच एक खाई है

उतनी ही गहरी

उतनी ही लम्बी

जितनी गहरी खाई दिल्ली और सारण्डा जंगल के बीच है

जितनी दूरी राँची और जलडेगा के बीच है

इसके बीच हैं-

खड़े होने की जि़द में

बार-बार कूडे़ के ढेर में गिरते बच्चे

अनचाहे प्रसव के खिलाफ सवाल जन्माती औरतें

खेत की बिवाइयों को

अपने चेहरे से उधेड़ते किसान

और अपने गलन के खिलाफ

आग के भट्ठों में लोहा गलाते मजदूर

इनके इरादों को आग से ज्यादा गर्म बनाने के लिए

अपनीचाह केहोनेके लिए

मेरी प्रणरत दोस्त!

हमारी अर्थी शाही हो नहीं सकती.

हमारी मौत पर

शोक गीत के धुन सुनाई नहीं देंगे

हमारी मौत से कहीं कोई अवकाश नहीं होगा

अखबारी परिचर्चाओं से बाहर

हमारी अर्थी पर केवल सफेद चादर होगी

धरती, आकाश

हवा, पानी और आग के रंगों से रंगी

हम केवल याद किए जाएँगे

उन लोगों के किस्सों में

जो हमारे साथ घायल हुए थे

जब भी उनकी आँखें ढुलकेंगी

शाही अर्थी के मायने बेमानी होगें

लोग उनके शोक गीतों पर ध्यान नहीं देंगे

वे केवल हमारे किस्से सुनेंगे

हमारी अंतिम क्रिया पर रचे जाएँगे संघर्ष के गीत

गीतों में कहा जाएगा

क्यों धरती का रंग हमारे बदन-सा है

क्यों आकाश हमारी आँखों से छोटा है

क्यों हवा की गति हमारे कदमों से धीमी है

क्यों पानी से ज्यादा रास्ते हमने बनाए

क्यों आग की तपिश हमारी बातों से कम है

मेरी युद्धरत दोस्त!

तुम कभी हारना मत

हम लड़ते हुए मारे जाएँगे

उन जंगली पगडंडियों में

उन चैराहों में

उन घाटों में

जहाँ जीवन सबसे अधिक संभव होगा.

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

राज्य द्वारा सीआपीपी और अन्य जनसंगठनों को निशाना बनाकर चलाए जा रहे बदनामी अभियान की पुरजोर निंदा करो


राज्य की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों में भय फैलाने और उन्हें अलगाव में डालने के लिए चलाए जा रहे अभियान का पर्दाफाश करो।

(जीतन मरांडी व अन्य साथियों की फांसी की सजा रद्ध होने के संदर्भ में दिल्ली में फांसी की सजा के खिलाफ हुई गोष्ठी में परित प्रस्ताव)

भारत के राज्य गृह मंत्राी जितेन्द्र सिंह के इस वक्तव्य की सीआरपीपी घोर निंदा करता है कि कमेटी सीपीआई माओवादी का खुला संगठन है (देखें 8 दिसम्बर 2011 का टाईम्स ऑफ इंडिया)। यह उन मंचों, संगठनों, और राजनैतिक मतों को फंसाने का एक सोचा समझा प्रयास है जो सरकार की नीतियों की खिलाफत करते हैं। साम्राज्यवादी हितों के सामने पूर्ण नतमस्तक होकर उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण को आक्रमक तरीकों से लागू करने वाले राज्य के गैर-कानूनी अत्याचारों के खिलाफ बनी सीआरपीपी ने शुरूआत से ही यह मांग की है कि जेलों में भेजे गए सभी राजनैतिक बंदियों को बगैर शर्त रिहा किया जाए। इन राजनैतिक बंदियों में से अधिकतर बगैर सुनवाई के सालों से जेल में पड़े हैं और उन पर राजनीतिक मंशा से अनेकों केस चस्पा कर दिए गए हैं।
सीआरपीपी ने पहली बार इस मांग को उठाया कि भारत सरकार को राजनीतिक बंदियों के दर्जे को मानना चाहिए, क्योंकि उसने ‘संयुक्त राष्ट्र इंटरनेशनल कोनिवेंट आफ सिविल और राजनीतिक राइट’ पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें राजनैतिक बंदियों के अधिकारों के बारें में साफतौर पर लिखा हुआ है। अपनी कार्रवाईयों के जरिए सीआरपीपी ने उपमहाद्विप में सबसे उत्पीडित और शोषित जनता के जनवादी अधिकारों को खत्म करने पर अपनी चिंता और गुस्से को जाहिर किया है और इस पर जनमत भी निर्मित कर रहा है। हरेक के लिए जनवादी स्पेस बढ़ाने हेतू आवाज उठाना, ताकि वे आत्मसम्मान और अच्छे से जी सके, सत्ता के हितों के खिलाफ जाता है। इसलिए सीआरपीपी को एक ‘खतरे’ के रूप में दिखाना उपमहाद्वीप में लोकतन्त्रा के असली चेहरे को ही सामने लाता है। यह ऐसे समय में किया जा रहा है जब विकास के नाम पर राज्य की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती- अर्धसैन्य बलों, सेना, पुलिस’ आदि की तैनाती- को उपमहद्विप में आदिवासियों और दलितों को चुप कराने, बलात्कार करवाने और मारने के लिए प्रयोग किया जा रहा है, जिसे भारत के गृहमंत्राी ने आपरेशन ग्रीन हंट की संज्ञा दी है। इन परिस्थितियों में छत्तीसगढ़, झारखंड, उडिसा, बिहार, जंगलमहल आदि क्षेत्रों में विस्थापन, वंचना, विनाश और मौत के चार शब्दों के खिलाफ लड़ने वाले राजनैतिक बंदियों की तेजी से बढ़ती संख्या के कारण, और मुस्लिम राजनैतिक बंदियों व राष्ट्रीयताओं के आन्दोलनों के राजनैतिक बंदियों के बारे में आवाज उठाने की विभिन्न जनांदोलनों की मांग पर सीआरपीपी का निर्माण किया गया। एक निराश राज्य के लिए यह महत्वपूर्ण हो गया कि वो असहमती के सभी स्वरों को खामोश करने की नीति के विस्तार के बतौर, और लोगों में खौफ पैदा करने के लिए सीआरपीपी जैसे मंचों को बदनाम करे और उसे आपराधिक घोषित करे। यह सीआरपीपी की ताकत को भी दिखाता है कि उसमें उपमहाद्वीप में उन सभी सम्भव आवाजों को एक साथ लाया गया है जो भारतीय राज्य की जनविरोधी और गैरकानूनी कार्रवाईयों के खिलाफ बोलते हैं।
सीआरपीपी को इस बात भी ऐतराज है कि मिडिया ने इस रिपोर्ट को जिस तरह से पेश किया, वह रिपोर्ट करने से ज्यादा संकेत करना था। इस खबर को उन्होनें सनसनीखेज खबरों की चक्की में शामिल कर दिया।
हम उपमहाद्वीप के सभी जनवादी और आजादी पसन्द लोगों को आह्वान करते हैं कि वो सामने आएं और राज्य के इन कोशिशों की एक स्वर में निंदा करें जो राज्य की इच्छा से भिन्न राजनैतिक मतों को बदनाम करने और अपराधी ठहराना चाहती हैं। राज्य मंत्राी का पूरा वक्तव्य कि सीपीआई (एमएल)न्यू डेमोक्रेसी, आरडीएफ, पीडीएफआई, डीएसयू, सीपीआई(एमएल)नक्सलबारी और अन्य जनसंगठनों पर सरकार अपने आंखों और कानों के जरिए ‘तीखी नजर’ रख रही है, आम जनता में भय पैदा करने के लिए दिया गया है। राज्य की ऐसी फासीवादी मंशा का पुरजोर तरीके से विरोध करने की जरूरत है साथ ही जनता की जिंदगियों के लिए खतरा बन चुकी राज्य की जनविरोधी नीतियों का वापिस लेने की आवश्यकता पर बल देने की जरूरत है।

जनसंस्कृतिकर्मी जीतन मरांडी और अन्य लोगों के बरी करवाने के लिए चलाया गया संयुक्त जनसंघर्ष जिन्दाबाद


मांग करें कि जीतन मरांडी के खिलाफ झूठे सबूत बनाने वाले पुलिस और राजनीतिज्ञ पर केस दर्ज किया जाए।

(जीतन मरांडी व अन्य साथियों की फांसी की सजा रद्ध होने के संदर्भ में दिल्ली में फांसी की सजा के खिलाफ हुई गोष्ठी में परित प्रस्ताव)
जनवादी और प्रगतिशील लोगों द्वारा तीन माह आठ महिने और तीन दिन तक निरन्तर अभियान चलाने के बाद ही जीतन मरांडी और तीन अन्य लोग बरी हुए। जीतन मरांडी पर केस लगाना और मौत की सजा देना अपराधी बनाने का ऐसा तरीका है, जिसे कानून के तथाकथित रखवाले इस पूरे उपमहाद्विप में अघोषित आपातकाल लागू करने के लिए प्रयोग कर रहे हैं, जहां गरीबों में से सबसे गरीब अपनी सम्पदा, जिंदगी और आजीविका की लूट के खिलाफ लड़ रहे हैं।
ऐसे समय में हम मांग करते हैं कि उन लोगों पर केस दर्ज किया जाना चाहिए, जो ऐसे दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के लिए उत्तरदायी है। जीतन को बरी करवाने के लिए इस महाद्वीप में सशक्त तरीके से गोलबंद हुए लोगों का गुस्सा और विरोध दिखाता है कि जीतन एक ऐसे सांस्कृतिक कर्मी हैं जो जनता के दुखों और सपनों को अपने गानों के माध्यम से सामने ला सकता था। और इससे जागृत जनता की सामूहिक इच्छाशक्ति सत्ता की उस असहनशील कार्रवाई को चुनौती दे सकती थी जिसके तहत उपमहाद्विप के कई हिस्सों में झूठे केस बनाए जा रहे हैं, सिलसिलेवार गिरफतारी की जा रही हैं, बगैर किसी उचित कारण के लम्बे समय तक कोर्ट में पेश नहीं किया जाता है, यातनाएं देने, गायब करने, झूठी मुठभेड़ों में मारने, बलात्कार करने जैसे घनघोर कृत्य किए जा रहे हैं।
दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के अन्य मामलो की तरह इसमें भी हमें असहमतियों के सभी रूपों को अपराधी ठहराने का राज्य का बढ़ता रूझान दिखाई देता है, जबकि आरोपियों के अधिकारों और सुरक्षा करने के लिए बनाई गई प्रक्रियाओं और नियमों को विशेषतः राजनैतिक बंदियों के मामले में तरोड़ने मरोडने के पुलिस-राजनैतिज्ञों-न्यायिक प्रणाली के अपराधिक गठजोड़ की तो बात न ही की जाए तो अच्छा है। न्यायालय के फैसले से भी अधिक साफ तरीके से तो जीतन के वकील ने कहा है- ‘देवरी पुलिस स्टेशन ने नियमघाट पुलिस स्टेशने के इंचार्ज को 21 फरवरी 2008 को लिखे पत्रा न. 205/08 में कहा था कि नियमघाट के रहने वाले आरोपी जीतन मरांडी उर्फ श्यामलाल किसकु के नाम में तलाशी और गिरफतारी वारंट जारी किए जाएं। इससे साफ है कि पुलिस जिस जीतन मरांडी को खोज रही थी, उसकी बजाय उन्होंने किसी और जीतन मरांडी को गिरफतार कर लिया।
हम मांग करते हें कि पूरे झारखंड में जनकलाकार के बतौर विख्यात जीतन मरांडी को जानबुझकर गिरफतार करने वाले मुरारी लाल मीणा सहित अन्य पुलिसकर्मीयों पर केस दर्ज किया जाए, जिन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अपराधियों को कानून के न्यायालय में जीतन मरांडी की पहचान करने वाले झूठे गवाह बना दिये। कानून की अदालत में शपथ लेकर झूठ बोलना अवहेलना करने के समान है और ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अपराध करने की कार्रवाई शुरू की जाए, अन्यथा राज्य की यह दुर्भावना पूर्ण कार्रवाई बेलगाम जारी रहेगी।

मौत की सजा के पूर्ण खात्मे के लिए


(जीतन मरांडी व अन्य साथियों की फांसी की सजा रद्ध होने के संदर्भ में दिल्ली में फांसी की सजा के खिलाफ हुई गोष्ठी में परित प्रस्ताव)

यह गोष्ठी मानती है कि मौत की सजा सामाजिक असमानता को दिखाती है। यह इस बात को भी दिखाती है कि यह राज्य की सोचा समझी चाल है। भारतीय उपमहाद्वीप में वर्ग से गुथी हुई जातीय व्यवस्था से बने सामंती ढांचे की ताकत में, और मुस्लिम अल्पसंख्यकों व राष्ट्रीयताओं के प्रति साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों में इस पक्षपात की झलक साफ दिखाई देती है। साम्राज्यवादी बुर्जआ और उसके स्थानीय एजेंटों के मुनाफे को अधिकतम करने के लिए लाई गई उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की नीतियों के बढ़ते हमले के साथ राज्य ने खुद को दमनकारी कानूनों से भी लैस कर लिया है, ताकि जनता के बढ़ते गुस्से के ज्वार को रोका जा सके। दमनकारी कानूनों का सहारा लेकर राज्य एक ‘राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य’ बनाने की आवश्यकता को वैचारिक स्वीकृति देने की कोशिश कर रहा है। यह कोशिश अमेरिका के नेतृत्व में जारी तथाकथित आतंक के विरूद्ध युद्ध को प्रोत्साहित करेगा। इसके कारण मौत की सजा की पूर्ण समाप्ति की लड़ाई तीखी और जटिल बन गई है, क्योंकि मौत की सजा जनविरोधी कानूनों से लैस राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य के साथ घुलमिल गई है। ऐसी स्थिति ने फांसी की सजा को लोगों के बढ़ते गुस्से पर रोक लगाने के लिए प्रयोग करना आसान बना दिया है। हमारे देश में राज्य द्वारा दी जानी वाली मौत की सजा देने के मामलों में वृद्धि के कारण, और मौत की सजा में असमानता को मुख्यतः चिन्हित करके यह गोष्ठी उस मौत की सजा की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है क्योंकि मौत की सजा को राज्य न्याय की खंडित सोच को वैध ठहराने के लिए प्रयोग कर रहा है।
जब तक भारतीय उपमहाद्विप में लोग विभिन्न सरकारों की गलत नीतियों से उपजे असमानता के जीवंत यर्थाथ को भोगेंगें, तब तक इस यथार्थ को इसके कानूनी तन्त्रा के परिणाम के रूप में देखा जा सकता है जिसे लोगों के नाम पर लागू किया जाता है। यदि भारतीय राज्य फांसी की सजा को प्रतिकार या उपयोगी मूल्य के रूप में मानना जारी रखेगा, तो असमानता सरकार और नीति निर्धारकों, जोकि उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण के दौर में लालच और अनिष्ट संचय पर आधारित व्यवस्था का खुला समर्थन करते हैं, के लिए एक ‘सहन करने वाली’ चीज नही रहेगी। असमानना एक ऐसे मूल्य के बतौर रहती है जिसे सरकार मौत की सजा को प्रयोग करने की हठधर्मिता के जरिए लागू करती है और इसे पेचिदा तरीके से संरक्षित करती है।
आधे से अधिक एशियाई देशों में मौत की सजा खत्म कर दी गई है या फिर पिछले दस सालों से किसी को फांसी नहीं दी गई है। युरोप के अधिकतर देशों में इस बर्बर और अमानवीय कार्रवाई का अन्त करने के लिए कानून पारित किए गए हैं। इस संदर्भ में भारत, जोकि विश्व की सबसे बड़े लोकतन्त्रा होने का दम्भ भरता है, में राज्य की स्वीकृति का सुनिश्चित करने के लिए ऐसे बर्बर और अमानवीय तरीके जारी रखने का कोई कारण नहीं है। यह गोष्ठी राज्य द्वारा सजा के रूप में मौत की सजा के पूर्ण खात्मे की मांग करती है।


गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

जनांदोलन को कुचलने की साजिश बंद करो!


विस्थापन विरोधी जनविकास आन्दोलन
कार्यालय: सरईटांड, पोस्ट: मोहराबादी, रांची

जनांदोलन को कुचलने की साजिश बंद करो!
पोस्को परियोजना रद्ध करो!!
गत दिवस उडिसा के पारादीप में पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के बनैर तले प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पोस्को कम्पनी के निजी मिलिशिया ने हमला कर दिया। लगभग 2000 लोग पोस्को कम्पनी के लिए तटिय इलाके में बनाई जा रही सड़क का विरोध कर रहे थे। इस हमले में कम्पनी के गुंडों ने बम्ब भी फैंका। इस लड़ाई में 7-8 प्रदर्शन कारी घायल हो गए।
भारत की सबसे बड़े साम्राज्यवादी पूंजी निवेश को जनता ने अपने प्रतिरोध के जरिए पिछले छः सालों से रोका हुआ है। जनता ने अपनी जान देकर भी इस निवेश को रोककर अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रही है। परन्तु केन्द्र सरकार की शह पर उडिसा का मुख्यमंत्री जनआकांक्षा को नकार कर हर कीमत पर इस परियोजना के निर्माण की कोशिश कर रहा है। प्रदर्शनकारियों पर इस ताजा हमले से पूर्व उडिसा की सरकार ने पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के नेता अभय साहू को हाल ही में गिरफ्तार कर फर्जी केस दर्ज कर दिए। इस ताजा हमले की आड़ में सरकार समिति के अन्य नेताओं को भी जेल की सलाखों के पीछे भेजने की तैयारी कर रही है।
20 जून 2008 को भी कम्पनी के गुंडों ने गोबिन्दपुर गांव में बम्बों से हमला किया था, जिसमें पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति का साथी तपन मंडल शहीद हो गया था। इस भिडंत के बहाने सरकार ने कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था तथा उन्हें कई महीनों तक जेल में कैद रखा था। इस हमलें में भी एक गुंडे के खुद के बम्ब में ही मारे जाने का बहाना बनाकर सरकार आन्दोलन को कुचलने की साजिश रच रही है।
सरकार जनआकांक्षा का आदर कर परियोजना को रद्ध करने की बजाय बार बार गुंडो, पुलिस और आम जनता के बीच विवाद पैदा करवा रही है और लोगों पर जुल्मों-सितम ड़हा रही है। सरकार को जनांदोलन को कुचलने की साजिश करने की बजाय जनता की आवाज की कद्र करते हुए पोस्को परियोजना का काम बंद करना चाहिए और पोस्को कम्पनी के साथ किए गए एमओयू को तुरंत रद्ध करना चाहिए।

के एन पंडित अजय
संयोजक सहसंयोजक

लड़ाई जारी है....

3 साल 8 माह 3 दिन पहले जीतन मरांडी पर दर्ज किए गए चिलखारी केस में झारखंड उच्च न्यायालय उसे निर्दोष करार देते हुए फांसी की सजा रद्ध कर दी। इस केस के जरिए प्रशासन और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ ने 3 साल 8 माह तक जीतन मरांडी के गले के स्वर को शोषितों-उत्पीड़ितों के पक्ष में उठने से रोके रखा। जीतन को फांसी के तख्ते पर चढ़ाकर उसकी आवाज को हमेशा के लिए खामोश करने की जुल्मी सरकार की कोशिश तो नाकाम हो गई। जनता के संघर्ष के बदौलत आज जीतन मरांडी को फांसी की दहलीज से वापिस खींच लिया गया। परन्तु सब जानते हैं कि जीतन मरांडी की आवाज को खामोश करने के लिए सरकार ने उसपर अनेकों फर्जी केस लादे थे। झारखंड सरकार के जुल्मों-सितम का शिकार बना जीतन मरांडी अभी भी जेल में रहने के लिए मजबूर है। जीतन मरांडी को फांसी के पंजे से मुक्त कराने पर संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। जीतन मरांडी पर देशद्रोह जैसे केस अभी तक भी जारी हैं और जीतन मरांडी जैसे ही हजारों कार्यकर्ताओं को भी जेलों की सलाखों में कैद कर समाज बदलाव के सपनों को सच्चाई में बदलने से रोकने की कोशिश की जा रही है। राजद्रोह, यूएपीए, पोटा, सीएलए, टाड़ा जैसे कानूनों के जरिए उनकी आकांक्षाओं को कुचला जा रहा है।

जीतन मरांडी के उपर दर्ज किए गए सभी मुकदमें वापिस लिए जाएं तथा उन्हें तत्काल बरी किया जाए।
जीतन मरांडी को फर्जी केसों में फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों और राजनीतिज्ञों को सजा दी जाए।
तमाम राजनैतिक बंदियों को तुरन्त बगैर शर्त रिहा किया जाए।
भारत के कानूनों से फांसी की सजा का प्रावधान खत्म किया जाए।
यूएपीए, राजद्रोह जैसे दमनकारी कानून और कानूनी प्रावधान तुरन्त निरस्त किए जाएं।