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गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

राज्य द्वारा सीआपीपी और अन्य जनसंगठनों को निशाना बनाकर चलाए जा रहे बदनामी अभियान की पुरजोर निंदा करो


राज्य की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों में भय फैलाने और उन्हें अलगाव में डालने के लिए चलाए जा रहे अभियान का पर्दाफाश करो।

(जीतन मरांडी व अन्य साथियों की फांसी की सजा रद्ध होने के संदर्भ में दिल्ली में फांसी की सजा के खिलाफ हुई गोष्ठी में परित प्रस्ताव)

भारत के राज्य गृह मंत्राी जितेन्द्र सिंह के इस वक्तव्य की सीआरपीपी घोर निंदा करता है कि कमेटी सीपीआई माओवादी का खुला संगठन है (देखें 8 दिसम्बर 2011 का टाईम्स ऑफ इंडिया)। यह उन मंचों, संगठनों, और राजनैतिक मतों को फंसाने का एक सोचा समझा प्रयास है जो सरकार की नीतियों की खिलाफत करते हैं। साम्राज्यवादी हितों के सामने पूर्ण नतमस्तक होकर उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण को आक्रमक तरीकों से लागू करने वाले राज्य के गैर-कानूनी अत्याचारों के खिलाफ बनी सीआरपीपी ने शुरूआत से ही यह मांग की है कि जेलों में भेजे गए सभी राजनैतिक बंदियों को बगैर शर्त रिहा किया जाए। इन राजनैतिक बंदियों में से अधिकतर बगैर सुनवाई के सालों से जेल में पड़े हैं और उन पर राजनीतिक मंशा से अनेकों केस चस्पा कर दिए गए हैं।
सीआरपीपी ने पहली बार इस मांग को उठाया कि भारत सरकार को राजनीतिक बंदियों के दर्जे को मानना चाहिए, क्योंकि उसने ‘संयुक्त राष्ट्र इंटरनेशनल कोनिवेंट आफ सिविल और राजनीतिक राइट’ पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें राजनैतिक बंदियों के अधिकारों के बारें में साफतौर पर लिखा हुआ है। अपनी कार्रवाईयों के जरिए सीआरपीपी ने उपमहाद्विप में सबसे उत्पीडित और शोषित जनता के जनवादी अधिकारों को खत्म करने पर अपनी चिंता और गुस्से को जाहिर किया है और इस पर जनमत भी निर्मित कर रहा है। हरेक के लिए जनवादी स्पेस बढ़ाने हेतू आवाज उठाना, ताकि वे आत्मसम्मान और अच्छे से जी सके, सत्ता के हितों के खिलाफ जाता है। इसलिए सीआरपीपी को एक ‘खतरे’ के रूप में दिखाना उपमहाद्वीप में लोकतन्त्रा के असली चेहरे को ही सामने लाता है। यह ऐसे समय में किया जा रहा है जब विकास के नाम पर राज्य की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती- अर्धसैन्य बलों, सेना, पुलिस’ आदि की तैनाती- को उपमहद्विप में आदिवासियों और दलितों को चुप कराने, बलात्कार करवाने और मारने के लिए प्रयोग किया जा रहा है, जिसे भारत के गृहमंत्राी ने आपरेशन ग्रीन हंट की संज्ञा दी है। इन परिस्थितियों में छत्तीसगढ़, झारखंड, उडिसा, बिहार, जंगलमहल आदि क्षेत्रों में विस्थापन, वंचना, विनाश और मौत के चार शब्दों के खिलाफ लड़ने वाले राजनैतिक बंदियों की तेजी से बढ़ती संख्या के कारण, और मुस्लिम राजनैतिक बंदियों व राष्ट्रीयताओं के आन्दोलनों के राजनैतिक बंदियों के बारे में आवाज उठाने की विभिन्न जनांदोलनों की मांग पर सीआरपीपी का निर्माण किया गया। एक निराश राज्य के लिए यह महत्वपूर्ण हो गया कि वो असहमती के सभी स्वरों को खामोश करने की नीति के विस्तार के बतौर, और लोगों में खौफ पैदा करने के लिए सीआरपीपी जैसे मंचों को बदनाम करे और उसे आपराधिक घोषित करे। यह सीआरपीपी की ताकत को भी दिखाता है कि उसमें उपमहाद्वीप में उन सभी सम्भव आवाजों को एक साथ लाया गया है जो भारतीय राज्य की जनविरोधी और गैरकानूनी कार्रवाईयों के खिलाफ बोलते हैं।
सीआरपीपी को इस बात भी ऐतराज है कि मिडिया ने इस रिपोर्ट को जिस तरह से पेश किया, वह रिपोर्ट करने से ज्यादा संकेत करना था। इस खबर को उन्होनें सनसनीखेज खबरों की चक्की में शामिल कर दिया।
हम उपमहाद्वीप के सभी जनवादी और आजादी पसन्द लोगों को आह्वान करते हैं कि वो सामने आएं और राज्य के इन कोशिशों की एक स्वर में निंदा करें जो राज्य की इच्छा से भिन्न राजनैतिक मतों को बदनाम करने और अपराधी ठहराना चाहती हैं। राज्य मंत्राी का पूरा वक्तव्य कि सीपीआई (एमएल)न्यू डेमोक्रेसी, आरडीएफ, पीडीएफआई, डीएसयू, सीपीआई(एमएल)नक्सलबारी और अन्य जनसंगठनों पर सरकार अपने आंखों और कानों के जरिए ‘तीखी नजर’ रख रही है, आम जनता में भय पैदा करने के लिए दिया गया है। राज्य की ऐसी फासीवादी मंशा का पुरजोर तरीके से विरोध करने की जरूरत है साथ ही जनता की जिंदगियों के लिए खतरा बन चुकी राज्य की जनविरोधी नीतियों का वापिस लेने की आवश्यकता पर बल देने की जरूरत है।

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