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सोमवार, 5 दिसंबर 2011

सीपीआई (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य किशन जी की हत्या पर सीडीआरओ की तथ्य अन्वेषक रपट

कॉरडिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट आर्गेनाईजेशन (सीडीआरओ) के घटक एसोशिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट, आंध्र प्रदेश सिविल लिबर्टी कमेटी, बंदी मुक्ति कमेटी और पीपुल्स यूनियन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट, दिल्ली की 22 सदस्ययी टीम ने 1 दिसम्बर, 2011 को मोलाजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी की तथाकथित मुठभेड़ में हुई हत्या की जांच पड़ताल की। टीम ने पश्चिम मेदिनीपुर के बुरीसोल की गावड़ी सोराकट्टा और गोसाईबंध गांव का दौरा किया। टीम ने दोनों गांव के लोगों से, जामबोनी पुलिस स्टेशन के सबइंस्पेक्टर और एएसआई से बात की और उस स्थल का मुआयना किया, जहां 24 नवम्बर को तथाकथित मुठभेड़ हुई थी।

स्थल: किशन जी का शव बुरीसोल गांव के सोराकट्टा गावड़ी से 300 मीटर दूरी पर मिला था। यह जगह गांव के फुटबाल मैदान से मात्र 50 मीटर की दूरी पर है और साल पेड़ों के हल्के से आवरण से आच्छादित है। शव मिलने की जगह से थोड़ी ही दूरी पर एक दीमकों वाली पहाड़ी है। इसके चारो और थोड़े से साल पेड़ हैं जो हल्का सा आवरण है। दीमकों की पहाड़ी को तथाकथित गोलीबारी से कोई नुक्सान नहीं पहुंचा। शव वाली जगह पर जहां सिर और धड़ था, वहां खुन जमा हुआ है। परन्तु टांगों की ओर खुन का कोई थक्का दिखाई नहीं दिया। जिन पेड़ों पर गोली के निशान दिखाए जा रहे हैं, वहां गोली से जले के निशान दिखाई नहीं दिए। मृतक के बुरी तरह विक्षिप्त शव की अगर शव मिलने वाली जगह के अबाधित स्थल से तुलना करें तो कई संदेह पैदा होते हैं। यदि भारी गोलाबारी हुई थी तो चारो और उसके निशान दिखाई देने चाहिए। सबसे ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि शव के कुछ ईंच दूर स्थित दीमकों की पहाड़ी का कुछ भी नुक्सान नहीं हुआ, जैसाकि चारों ओर से होने वाली गोलाबारी के दौरान होना चाहिए। सुखे पत्तों पर गोली चलने से पैदा होने वाली चिंगारी का कोई चिन्ह नजर नहीं आया। टीम सदस्य पेड़ों व दीमकों की पहाड़ी पर गोलियों के निशान या अन्य चिन्ह देखने के लिए खुद चारों ओर घुमे, परन्तु केवल कुछ पेड़ों पर कटाव के निशान है परन्तु एक भी दीमक की पहाड़ी नष्ट नहीं हुई और भारी राईफल और मोर्टार के कारण जलने या आग लगने का कोई साफ चिन्ह नजर नहीं आया।

ग्रामीणों के वक्तव्य: सोराकट्टा गावड़ी में हमें बताया गया कि घटना के दो दिन पूर्व से ही सुरक्षा बलों की आवाजाही हुई थी और यह 24 नवम्बर को यह आवाजाही बहुत ज्यादा बढ़ गई और सुबह 10 से 11 बजे के दौरान पुलिस बलों ने ग्रामीणों को घर के अन्दर रहने और बाहर नहीं निकलने को कहा। ग्रामीणों के अनुसार इन दिनों में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के दौरान उन्होंने कोई उद्घोषणा तक नहीं सुनी, पुलिस द्वारा किशन जी को आत्मसमर्पण करने के लिए कहने की बात तो छोड़ ही दिजिए। 24 तारीख शाम के 4-5 बजे उन्होंने ऊंची-ऊंची आवाजें सुनी और उसके बाद 15 से 30 मिन्ट तक गोलीबारी की आवाजें सुनाई दी। यह बात महत्वपूर्ण है कि एक स्थानीय नीम हकीम डाक्टर बुधेव महतो और 20 साल के छात्र ताराचंद टुडु को उठाया गया था और उन दोनों पर केस नम्बर. 46/11, तिथी 25/11/2011 दर्ज किया गया और भारतीय दंड संहिता की धारा 307 व अन्य धाराओं के तहत उन पर आरोप लगाए गए।

बुरीसोल से 5 किलोमीटर दूर गोसाईबंध में स्थानीय कालेज में भूगोल स्नातक में तीसरे साल के छात्र धर्मन्द्र को किशन जी को आश्रय देने के आरोप में उठाया गया और पुलिस का दावा है कि उससे एक लैपटॉप बरामद हुआ है। परिजनों का कहना है कि वो बैग धर्मेन्द्र का है और उसमें कोई लैपटाप नहीं था, बल्कि उसमें 20,000 रूपये थे जिन्हें चुरा लिया गया है और साथ ही राशन कार्ड, सर्टिफिकेट और ओबीसी कार्ड भी जब्त कर लिए गए हैं।
पुलिस स्टेशन जामबोनी: टीम सदस्यों ने एसआई सब्यासाची बोधक से बात की और उनसे पूछा कि उन्हें मुठभेड़ की सुचना कब मिली, यह सूचना उन्हें किसने दी और साथ ही एफआईआर किसने दर्ज की क्योंकि यह उसका अधिकार क्षेत्र है। उसके अनुसार उन्हें यह सूचना रात को 10.30 बजे जंगलमहल के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक आलोकनाथ राजौरी ने दी। और इसी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने एफआईआर दर्ज की। यह गौर करने लायक है कि जांच की जिम्मेवारी उपपुलिस अधीक्षक सीबी-सीआईडी को दी गई है जबकि शिकायतकर्ता उच्चाधिकारी है। यह प्राकृतिक न्याय के उस सिद्धांत का उल्लंघन है जिसके तहत शिकायतकर्ता अधिकारी से उच्च अधिकारी ही अपराध की जांच पड़ताल करता है।

हम किशन जी के शव पर मिली चोटों की प्रकृति के बारे में याद करना चाहते हैं। इसमें गोलियां थी, नुकिले घाव थे और जली हुई चोटें थी। आश्चर्यजनक रूप से उनकी कमीज और पैंट पर उनके शरीर के हिस्सों के जख्मों के अनुरूप जख्म के कोई निशान नहीं थे।

1. सिर पर चोट
दांयी आंख गोलक में से लटक रही थी।
निचला जबड़ा गायब था इसकी बजाय वहां जलने के निशान थे।
सिर के पिछले हिस्से खोपड़ी के हिस्से गायब थे।
चेहरे पर चार जगह संगीन जैसे चाकू के निशान थे।
गले के एक तिहाई हिस्से पर चीरे के निशान थे।
2. दांयी बाजू की हड्डी टुटी हुई थी जबकि त्वचा पर कोई बाहरी चोट नहीं थी।
3. दांयी बाजू पर गोलियों से जख्म के तीन निशान थे।
4. बांयी तलवे की त्वचा गायब थी और जली हुई थी।
5. बांये हाथ के दूसरी उंगली का एक तिहाई हिस्सा टुटा हुआ था।
6. शव की छाती की ओर 30 से ज्यादा संगीन जैसे घाव के निशान थे।

हम कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा बनाई गई जांच रपट और पोस्टमार्टम की रपट लेने में नाकामयाब रहे। फिर भी टीम सदस्यों ने इसे पढ़ा और इसमें से नोटस बनाए। आश्चर्यजनक रूप से गोली घुसने और बाहर निकलने से होने वाले जख्मों के अलावा उपरोक्त किसी भी जख्म को रिकार्ड नहीं किया गया।

हमारी छानबीन: शव को हुए नुक्सान के स्तर को शव मिलने वाले स्थल के चारो तरफ की अबाधित जगह से मिलाने पर हमारे मन में सरकार की कहानी पर संदेह उपजता है। रिपोर्ट हुई सरकार की कहानी में विसंगतियां भी हैं। उदाहरण के तौर पर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दावा है कि किशन जी और उनके साथियों की घेराबंदी तीन दिन चली और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए कहा गया, परन्तु ग्रामीणों ने लाउडस्पीकर से होने वाली किसी भी तरह की सार्वजनिक उदघोषणा को सुनने से इन्कार किया है, किशन जी को आत्मसमर्पण की कहना तो दूर की बात है। सीआरपीएफ की महानिदेशक विजय कुमार ने 25 नवम्बर को कहा कि मुठभेड़ में किशन जी तीन अन्यों लोगों के साथ मारे गए, जबकि केवल एक ही शव बरामद हुआ! 15-20 मिन्ट चली मुठभेड़ में सैंकडों गोलियां चलने की बात शव मिलने वाले स्थल के अनुरूप नहीं है।

किशनजी की हत्या पश्चिम बंगा सरकार और सीपीआई(माओवादी) के बीच बातचीत शुरू करवाने की शुरूआती कोशिशों की पृष्ठभूमि में की गई है। उनकी मौत से इन प्रयासों का बहुत धक्का लगेगा। हमें आश्चर्य है कि यह उसी बात का दोहराव है, जो पिछले साल की 1-2 जूलाई को चेरूकूरी राजकुमार उर्फ आजाद की झूठी मुठभेड़ में हत्या के दौरान घटित हुई थी।

हम हथियारबंद विवाद के इलाकों में घटित अपराध के संदर्भ में प्रशासन की एक शाखा द्वारा दूसरी शाखा के कामकाज की जांच के बारे में बात करना चाहते हैं, इस केस में सीबी-सीआईडी द्वारा संयुक्त बलों की भूमिका की जांच को निष्पक्ष और तटस्थ नहीं माना जा सकता। हम मानते हैं कि एक स्वतंत्र जांच जैसे एसआईटी के जरिए ही सच को सामने लाया जा सकता है।

इसी से हमारा संदेह पुख्ता होगा कि यह हिरासत में मौत का मामला प्रतीत होता है। इसलिए हम मांग करते हैं कि:

1. सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के सेवारत या सेवानिवृत न्यायाधीश की अगुआई में किशन जी की मौत की परिस्थितियों के बारे में स्वतंत्र न्यायिक जांच की जाए।
2. भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत आपराधिक केस दर्ज किया जाए।

देबाप्रसाद रायचौधरी (महासचिव, एपीडीआर)
सी एच चन्द्रशेखर (महासचिव, एपीसीएलसी)
भानू सरकार (सकेट्रीयेट सदस्य, बीएमएस)
गौतम नौलखा (सदस्य, पीयूडीआर)

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