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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

जनकलाकार जीतन मरांडी का सफरनामा


नाम-जीतन मरांडी उम्र-३२वर्ष, पिता का नाम- स्व. बुधन मरांडी, ग्राम-करन्दो, पो.- चिलगा, थाना- पीरटांड, जिला- गिरिडीह, झारखंड
अस्सी के दशक में मेरी जन्म गरीब किसान परिवार में हुईई।घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। महाजनी शोषण का शिकार बने हुए थे। जिससे अच्छी पौष्टिक आहार बचपन में नसीब नहीं हुआ। जरूरत के अनुसार कपड़ा लता भी नहीं मिलती थी। ऐसी भयानक दौर में मेरा पैदा होना खुशहाली बचपनी जिन्दगी नहीं जी पाया। 11-12 साल के उम्र में प्राथमिक मध्यविद्यालय में मेरी नामांकन कराया गया। फटे-पुराने कपड़ा पहन कर सिलेट पेंसील लेकर विद्यालय जाना शुरू किया। किसी तरह तीन साल तक ही स्कूल में पढ़ाई कर पाया। जिससे नाम एवं अक्षर ज्ञान तक ही सिख पाया। क्योंकि एक तरफ घर के काम में भी हाथ बंटा रहा था। खास करके जानवर की देखभाल करना था। पढ़ाई की इच्छा रहने के बावजूद गरीबी पढ़ने नहीं दिया। जिससे 1993 में स्कूल छोड़ देना पड़ा।
झारखंड एभेन (जागृति) का गठन 1984 में होगयी थी। मूल तौर पर यह संस्कृति संगठन है। दबे-कुचले जनता को जगाने के ख्याल से गाँव-गाँव में सांस्कृतिक कार्यक्रम अभियान चला रहे थे। 1994 आते-आते झारखंड एभेन टीम हमारे गाँव में दस्तक दी। जो गीत नाटकों के जरिए जनता को जगा रही थी। गरीबों की स्थिति को बयां करते हुए उससे उभरने के लिए नई दिशा दे रही थी। झारखंडी जनता की पराम्परा संस्कृति को बचाये रखते हुए गन्दी संस्कृति को ध्वस्त कर जनवादी संस्कृति का निर्माण करने हेतु जनता को प्रेरित करते थे। नशाखोरी, दहेज प्रथा, अन्धविश्वास एवं नारी शोषण के खिलाफ आन्दोलन की बिगुल भी बजा रहे थे। इन सब कार्यक्रमों को देखकर मैं काफी प्रभावित हुआ। जो ऐसे पिछड़े हुए क्षेत्रा में नई आन्दोलन थी। तब तक मैं 14-15 साल का हो चूका था। ऐसी चीजो को समझने लगा। तमाम तरह की पहलू को समझते हुए संगठन के साथ जुड़ने का इच्छा जताया। इसके बाद 1994 में झारखंड एभेन के साथ जुड़ गया। और विभिन्न तरह के कार्यक्रम में हिस्सा लेने लगा। जिससे और प्रेरणा मिलते गया। साथ ही सही मार्ग दर्शन भी। कुछ साल होते-होते जिम्मेवारी का भूमिका भी निभाने लगा। झारखंड एभेन लोकप्रिय संगठन बनने लगा। गाँव एवं इलाके में कमिटी बनती जा रही थी। 1997 में दो हजारीबाग एवं बोकारो जिला कमिटी भी सम्मेलन कर बना। जिससे हजारीबाग जिला कमिटी का सचिव मुझको बनाया जिससे संगठन का विस्तार होता गया। छोटे छोटे बच्चे एवं नौजवान क्रांतिकारी गीत गाने लगी। गाँव-गाँव में नाटक खेल लगे। पर्व-त्यौहारों में लोग क्रांतिकारी गीत गाकर मनोरंजन करने लगे। आम मेहनतकश महिलाएं एवं नौजवानों ने खुद गीत रचना शुरू की। फिल्मी गाना को छोड़कर जनता क्रांतिकारी गीत गुनगुनाने लगी। दहेज प्रथा, नशाखोरी एवं अंधविश्वास के खिलाफ जन गोलबन्दी आन्दोलन उठने लगी। अर्थात संास्कृतिक क्षेत्रा में बदलाव आने लगी। विभिन्न जन संगठनों के साथ गीत बनाकर मुद्धा आधारित कार्यक्रम से जनता के अन्दर मजबूत पैठ बनने लगी। विभिन्न तरह के महान ऐतिहासिक दिवस पालन करने हेतु जनता को प्रेरित करने के काम में भी एभेन की भूमिका अहम होती गयी। जैसे-अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस, मई दिवस, बिरसा जयन्ती, हूल दिवस, भगत सिंह का शहादत दिवस इत्यादि।
महान ऐतिहासिक मई दिवस के अवसर पर 7 मई 1999 को केदला (घाटो, हजारीबाग) में मजदूर मुक्ति संगठन के बैनर तले कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। हजारीबाग पुलिस धारा 144 लगाकर कार्यक्रम में जमा हुए जनता के ऊपर लाठी चलाने लगी और कुछ कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी की। जिसमें मुझको को भी गिरफ्तार किया और 9 मई को फर्जी मुकदमा लाद करके हजारीबाग जेल भेज दी। एक महीने सात दिनों बाद वहां से जमानत पर छुटे। यह मेरा पहला जेल यात्रा था। इस तरह पुलिसिया दमन के बीच संगठन को मजबूत करने हेतु और जोर दिया। जो 2000 में अपने द्वारा रचित क्रांतिकारी गीतों को हम लोगों ने ऑडियो कैसेटों में सजाया। जो पहला प्रकाशन था और जनता के अन्दर काफी प्रभाव डाला। क्योंकि क्षेत्रिय भाषा संथाली, खोरठा, नागपुरी में गीत थी। इसके बाद 2001 में गिरिडीह जिले के डुमरी थाना अन्तर्गत एक गाँव में रूढ़ीवादी संस्कृति एवं परम्परा का विरोध करते हुए क्रांतिकारी रीति रीवाज से पांच जोड़ों का झारखंड एभेन के पहल पर शिविर विवाह का सम्पन्न कराया गया। इस तरह के कार्यक्रम से जनता के अन्दर शुभ संदेश गया। इससे जनता की पूर्ण समर्थन मिली। विभिन्न इलाकों में इस तरह का कार्यक्रम होते रहा। जनवादी गीत संगीत को व्यापक रूप से प्रचार करने हेतु और कैसेटों को हम लोगों ने 2002 में प्रकाशित किया। इसमें खास करके नारी मुक्ति के सवाब पर ज्यादा गीत थी। हिन्दी खोरठा एवं संथाली में था। इसका भी नजात के पास व्यापक प्रभाव पड़ा। इस बीच पटना के मिलन हाई स्कूल मैदान में नारी मुक्ति संघ, बिहार-झारखंड द्वारा आठ मार्च, 2003 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर रैली एवं आमसभा का आयोजित की गई थी। व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार करने हेतु संघ के आमंत्राण पर हम लोग भी पहले ही पटना पहुँच गये थे। इसी बीच एक कम्प्युटर सेन्टर से पुलिस ने 25 फरवरी, 2003 को गिरफ्तार कर लिया और नेपाल एवं बिहार के आठ लोगों के साथ जोड़ कर फर्जी मुकदमा देकर 27 फरवरी, 2003 को पटना जेल भेज दिया। वहां से 11 महीने के बाद मैं हाईकोर्ट से जमानत पर निकला। इस तरह दमन के दौर में झारखंड एभेन का विकास होते गया। जिसका दुमका एवं राँची जिला के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे संघ का विस्तार हुआ। कई स्तर में कमिटी भी बनी। इसकी केन्द्रीय टीम बनी। जो विभिन्न अवसर पर देश के बड़े शहरों में भी कार्यक्रम कर चूकी है। हम लोग कई भाषाओं में गीत गाने लगे। इस तरह प्रभाव को देख धनबाद पुलिस ने दुबारा 29, जुलाई, 2005 को मजदूर संगठन समिति का प्रधान कार्यालय अगरपथरा करतरास, धनबाद से मजदूर नेताओं के साथ गिरफ्तार की। लगातार चार दिनों तक यातनाएं देते रहे और एक अगस्त को मंडल कारा धनबाद हम लोगों का ेभेजा, वह भी फर्जी मुकदमा देकर। पांच महीने 14 दिनों के बाद हाईकोर्ट से जमानत मिली और मैं निकला। वहीं पर मैंने कुछ गीतों का निर्माण किया जो विस्थापन एवं पुलिस दमन पर आधारित था। बाद में आडियो कैसटे बनाकर जनता के पास हम लोगों ने प्रस्तुत किया है। कुल मिलाकर संथाली, खोरठा, नागपुरी एवं हिन्दी में नौ कैसेटों का हम लोगों ने प्रकाशन किया है।
गरीब के जिन्दगानी कैसेट को एलबम में उतारने के लिए हमारी तैयारी चल रही थी। इसी बीच चिलखारी कांड हुआ। जिसमें गलत ढंग से उस कांड में मेरा नाम को जोड़ दिया गया। घटना के दिन अपने टीम के साथ एलबम की सुटींग में थे। अखबार में गलत तस्वीर छपवा कर सनसनी फैला दी गई। मेरे तरफ से खंडन आया, पर हमारी खंडन को नहीं माना गयी। पांच महीने के बाद राँची रातु रोड से राँची पुलिस ने 5 अप्रैल, 2008 को गिरफ्तार किया और कोतवाली थाना कांड संख्या 696/07 में गलत आरोप लगाकर जेल भेज दी। इसके बात 12 अप्रैल 2008 को चिलखारी कांड या देवरी थाना कांड संख्या 167/07 में गिरिडीह पुलिस रिमांड की। इसके बाद कई फर्जी मुकदमा मेरे ऊपर लगा दिया गया। जो आज तक मैं गिरिडीह जेल में तीन साल के बन्द हूँ।

जीतन मारंडी,
16/03/2011,
जेल, गिरिडीह

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