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सोमवार, 28 नवंबर 2011

‎‎1084 की माँ के नाम

कितनी महान है तूँ

माँ

कत्लगाह के दरवाजे पर

गिनती रही कलम होते सिर तूँ

1084 तक

पथराई हुई चीख को दबा कर सीने में

तूँ भेजती रही वीरों को

रण की ओर

कल एक और मरा है I

1084 वें के बाद

तूँ गिनती तो नहीं भूली

अभ उम्र की ढलती छाया

के साथ I

कल तूँ रोई थी किया

आँखों से छलकती गंगा को

कैसे रोका था तुने

नहीं तुम नहीं रोई होगी

पथराई आँखों में जलती ज्वाला को

लेकर तुने

दुहराया होगा परण

और पुत्रों को

जनम देने का

वह माँ !

तूँ महान जननी है !!

काश सारी माएं

1084 की माँ जैसी हों I

by Randeep Singh

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